मैं 1.5 लाख देकर आया हूं लोकसभा में: बारामुला सांसद इंजीनियर राशिद, पहलगाम हमले पर सरकार को घेरा

इंजीनियर राशिद का भाषण न केवल भावनात्मक था, बल्कि उसने सदन को यह सोचने पर मजबूर किया कि कश्मीर की जनता की असली पीड़ा आखिर कब सुनी जाएगी। उनकी आवाज उस घाटी से आई

नई दिल्ली, संसद भवन —
लोकसभा में मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के बारामुला से नवनिर्वाचित निर्दलीय सांसद इंजीनियर अब्दुल राशिद (जो फिलहाल तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं) ने अपने पहले भाषण में भावनात्मक उफान के साथ कश्मीर की पीड़ा, केंद्र सरकार की नीतियों और कश्मीरियों की अनसुनी आवाज़ को संसद के पटल पर जोरदार ढंग से उठाया।

राशिद ने शुरुआत मशहूर शायराना अंदाज़ में की:

“ऐसे दुस्तूर को, सुबह बेनूर को
मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता…”

और कहा कि जो लोग "नया कश्मीर" की बात करते हैं, वे जमीनी सच्चाई से अंजान हैं। उन्होंने तीखे शब्दों में कहा:

"मैं एक दिन के लिए डेढ़ लाख रुपये देकर आया हूं, लेकिन मेरे लिए कोई नहीं बोलता।"

पहलगाम हमले पर सरकार को घेरा
राशिद ने पहलगाम आतंकी हमले को इंसानियत की हत्या बताते हुए कहा कि, "जो कुछ पहलगाम में हुआ, उसकी सबसे ज्यादा पीड़ा कश्मीरियों को है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि 1989 से अब तक 80 हजार से ज्यादा कश्मीरियों की मौत हो चुकी है, और घाटी कब्रगाह में तब्दील हो गई है।

“आपको कश्मीर की ज़मीन चाहिए या वहां के लोग?”
उन्होंने सवाल किया कि देश में कश्मीर को केवल एक ज़मीन के टुकड़े के रूप में क्यों देखा जाता है। "क्या आपको कश्मीर की ज़मीन चाहिए या कश्मीर के लोग?" उन्होंने आगे कहा कि जब तक सरकार कश्मीरियों का दिल नहीं जीतती, तब तक न तो आतंकवाद खत्म होगा और न ही शांति आएगी।

राजनीतिक समाधान की मांग और स्टेटहुड की गुहार
राशिद ने कश्मीर मुद्दे को धार्मिक नहीं, राजनीतिक मुद्दा बताया और केंद्र से इसका राजनीतिक समाधान तलाशने की अपील की। उन्होंने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा (Statehood) वापस देने की पुरजोर मांग की और प्रधानमंत्री द्वारा गुरेज़ क्षेत्र के लोगों से किए गए वादों को याद दिलाते हुए कहा कि "5 मरला जमीन देने का वादा पूरा किया जाए।"

संविधान, नेहरू और अलगाववाद पर टिप्पणी
उन्होंने कहा कि कश्मीर के सबसे बड़े अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी भी तीन बार विधायक रह चुके हैं और संविधान की शपथ ले चुके हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसी परिस्थितियां क्यों बनीं, जिनमें लोकतंत्र पर भरोसा रखने वाला कोई व्यक्ति बाद में अलगाववाद की राह चुनता है?

“हमें पाकिस्तान से क्या लेना देना, हमें जीने दो”
राशिद ने कहा कि कश्मीर को पाकिस्तान या तालिबान से जोड़ना बंद किया जाए। “हमें पाकिस्तान से कोई लेना देना नहीं, हमें तो बस जीने दिया जाए, हमारे कल्चर और डेमोग्राफी से मत खेलिए।”

लोकसभा में एक गूंजता सवाल
भाषण के अंत में उन्होंने तीखी आलोचना करते हुए कहा कि “कल से कोई भी नेता कश्मीरियों के बारे में बात नहीं कर रहा। जब आप मेरे लिए नहीं बोल सके, तो कश्मीरियों के लिए क्या बोलेंगे?” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने विदेशों में 60 सांसद भेजे, लेकिन “उनमें एक भी कश्मीरी नहीं था।”