कविता नीलू शेखावत: फासले

नीलू शेखावत की एक रचना: दूर से चमकते चांद की उपमा कवि कुलगुरु से होती हुई अन्यान्य सौन्दर्य बिंबों में होती रही प्रतिफलित होती रहेगी दाग या गड्डे तो नैकट्य ने दिखाए

फासले

▪️फासले▪️
दूर से चमकते चांद की उपमा
कवि कुलगुरु से होती हुई
अन्यान्य सौन्दर्य बिंबों में होती रही
प्रतिफलित होती रहेगी
दाग या गड्डे तो नैकट्य ने दिखाए

धवल शिखरों की श्वेतिमा
 काव्य योग्य ही है
जीवनयापन योग्य नहीं
उड़ते बादल पा गए यक्ष का संदेश
भला बरस कर क्या बन पाते मेघदूत

नैन सुराही ढालना
प्रेयसी के ही हक रहा
संगिनी तो अलबत्ता
रोटी ही ढालती है चकले पर

मालूम है?
एक फासले पर 
हम ज्यादा अच्छे होते हैं
ये फासले बने रहे
टूटते दिलों में हौंसले बने रहें।

- नीलू शेखावत