राजस्थान नशा तस्करी 2025: उड़ता राजस्थान? नशे के जाल में फंसते युवा

वीरों की धरती राजस्थान, जिसे उसकी संस्कृति, लोककला और परंपराओं के लिए जाना जाता है, आज एक खतरनाक दौर से गुजर रहा है। प्रदेश में नशे का जाल गहराता जा रहा है और इ

जयपुर, 18 अगस्त 2025 | वीरों की धरती राजस्थान, जिसे उसकी संस्कृति, लोककला और परंपराओं के लिए जाना जाता है, आज एक खतरनाक दौर से गुजर रहा है। प्रदेश में नशे का जाल गहराता जा रहा है और इसकी गिरफ्त में सबसे अधिक युवा वर्ग आ रहा है। हालात ऐसे हैं कि विशेषज्ञ इसे “उड़ता पंजाब” जैसी स्थिति की आहट मान रहे हैं।

बाड़मेर से निकली सनसनी

22 जुलाई 2025 को बाड़मेर जिले में बीट कांस्टेबल मनोहर सिंह की सूचना पर पुलिस ने ऐसी फैक्ट्री का पर्दाफाश किया, जहां से 40 लाख रुपये की सामग्री जब्त हुई। बताया जा रहा है कि यही सामग्री करीब 100 करोड़ रुपये की एमडी ड्रग्स (म्याऊ म्याऊ) बनाने में इस्तेमाल होने वाली थी।

इस मामले में तस्कर रमेश विश्नोई का नाम सामने आया है, जिसे अब राजस्थान का ‘ड्रग किंगपिन’ कहा जा रहा है। बताया गया है कि रमेश पहले भी जोधपुर और प्रतापगढ़ में ऐसी फैक्ट्रियां चला चुका है। उसका नेटवर्क मुंबई के बृजू शुक्ला जैसे मास्टरमाइंड और स्थानीय खेत मालिकों तक फैला हुआ है।

6 अगस्त को गुजरात, महाराष्ट्र और प्रतापगढ़ पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में 88 करोड़ रुपये का केमिकल बरामद किया गया, जिसे गहरे गड्ढों में छुपाया गया था। इससे साफ है कि यह नेटवर्क सिर्फ राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सक्रिय है।

सीमाओं से घुसपैठ और तस्करी

राजस्थान की भौगोलिक सीमा तस्करों के लिए सबसे बड़ा हथियार बन गई है। पिछले ढाई सालों में पाकिस्तान से 125 किलो हेरोइन पकड़ी गई, जिनमें से 23 केस चार सीमावर्ती जिलों से जुड़े थे।

9000 से अधिक केस दर्ज हुए और 11,000 से ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं। श्रीगंगानगर, बीकानेर और बाड़मेर तक अब ड्रोन के जरिए पैकेट गिराए जा रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था पंजाब की तुलना में कमजोर है—जहां पंजाब में हर 20-30 किलोमीटर पर एक बटालियन है, वहीं राजस्थान में 50 किलोमीटर पर सिर्फ एक। यही वजह है कि तस्करों के लिए यह क्षेत्र ‘गोल्डन कॉरिडोर’ बन गया है।

एनसीबी की रिपोर्ट में बाड़मेर को इस समय सबसे बड़ा ‘हॉटस्पॉट’ बताया गया है।

युवाओं पर असर – सस्ता ज़हर

नशा सिर्फ ड्रग्स नहीं, बल्कि एक परिवार की बर्बादी है। राजस्थान का युवा, जो कभी इतिहास रचने का सपना देखता था, अब एमडी और स्मैक के जाल में फंसता जा रहा है।

2021 में एक ग्राम एमडी ड्रग्स 9,000 रुपये का था, जबकि आज मात्र 800 रुपये में उपलब्ध है। यही वजह है कि यह जहर गरीब तबके के किशोरों तक आसानी से पहुंच रहा है।

जयपुर पुलिस का कहना है कि 80 फीसदी अपराधों की जड़ नशा है।
रिक्शा चोरी से लेकर वाहन लूट और स्नैचिंग तक—सब कुछ नशे की लत पूरी करने के लिए हो रहा है।

इंस्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया साइटें भी इस व्यापार का नया अड्डा बन रही हैं। हाल ही में 83,000 फॉलोअर्स वाली इंस्टाग्रामर भाविका चौधरी को एमडी ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया गया था।

सिस्टम पर सवाल

सबसे चिंताजनक बात यह है कि राजस्थान में आठ पुलिसकर्मी खुद तस्करों से मिले पाए गए।

भले ही सरकार और पुलिस ने कई योजनाएं बनाई हों—2012 की राष्ट्रीय नीति, नशा मुक्त भारत अभियान, जयपुर पुलिस का ऑपरेशन क्लीन स्वीप, और गहलोत सरकार द्वारा 2022 में बनाई गई एंटी-नारकोटिक्स यूनिट—लेकिन तस्करों की चालाकी इन योजनाओं पर भारी पड़ रही है।

उम्मीद की किरण

हालांकि तस्वीर पूरी तरह निराशाजनक नहीं है। प्रदेश में 375 पुनर्वास केंद्र सक्रिय हैं, जहां नशे की गिरफ्त में आए लोगों का विषहरण और काउंसलिंग कर उन्हें जिंदगी की नई राह दी जा रही है।

जोधपुर के बिलारा ब्लॉक में ग्रामीणों ने सामाजिक स्तर पर खुद पहल की है—नशा बेचने वालों का बहिष्कार और नशे की लत में फंसे लोगों पर जुर्माना।

युवाओं के बीच चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों से यह संदेश दिया जा रहा है कि नशा कोई रोमांच नहीं, बल्कि बर्बादी है।

 समाज की जिम्मेदारी

राजस्थान की मिट्टी गहरी और मजबूत है, लेकिन नशे का जहर और भी गहरा है। यह लड़ाई सिर्फ कानून या सरकार नहीं लड़ सकती। इसमें परिवार, समाज और हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है।

अगर आज हम सजग नहीं हुए, तो यह जहर आने वाली पीढ़ियों को निगल जाएगा। लेकिन यदि हम सब मिलकर खड़े हों, तो यह धरती फिर से उसी वीरता और संस्कृति से भर उठेगी, जो राजस्थान की पहचान है।