वाडा खेड़ा जोड़ बना सियासी संग्राम : अपनी ही सरकार के खिलाफ भाजपा नेताओं का विरोध

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कलेक्ट्री गेट पर हुए जोरदार विरोध प्रदर्शन की अगुवाई किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि खुद भाजपा के दलीपसिंह मांडाणी, कुलदीपसिंह पालड़ी, और परमवीर सिंह चारण जैसे नेताओं ने की। इन नेताओं ने हजारों पशुपालकों के साथ कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया।

Sirohi | राजस्थान के वाडा खेड़ा जोड़ क्षेत्र में पशु चराई पर लगे प्रतिबंध के विरोध में मंगलवार को सैकड़ों पशुपालकों ने एकजुट होकर प्रदर्शन किया। जिला मुख्यालय पर कलेक्ट्री गेट के बाहर पशुपालकों ने करीब एक घंटे तक जमकर नारेबाजी की और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश जताया।

मंत्री ओटाराम देवासी को प्रदर्शनकारियों के बीच उतरना पड़ा मैदान में

राजस्थान में भाजपा की सरकार बनते ही सत्ता और संगठन में सामंजस्य की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन वाडा खेड़ा जोड़ में पशु चराई प्रतिबंध के मुद्दे ने खुद भाजपा नेताओं को अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने पर मजबूर कर दिया।

भाजपा नेताओं के नेतृत्व में हुआ विरोध प्रदर्शन

कलेक्ट्री गेट पर हुए जोरदार विरोध प्रदर्शन की अगुवाई किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि खुद भाजपा के दलीपसिंह मांडाणी, कुलदीपसिंह पालड़ी, और परमवीर सिंह चारण जैसे नेताओं ने की। इन नेताओं ने हजारों पशुपालकों के साथ कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया।

यह स्थिति भाजपा के भीतर टकराव और ग्राउंड लेवल पर नीतियों से उपजे असंतोष को स्पष्ट रूप से उजागर करती है।

क्या ओटाराम देवासी सरकार के भीतर असहज हैं?

विरोध इतना व्यापक था कि खुद राज्य मंत्री ओटाराम देवासी को हस्तक्षेप करना पड़ा। वे मौके पर पहुंचे, अधिकारियों के साथ बैठक की और राहत भरे फैसले घोषित किए।

यह सवाल अब उठने लगा है — क्या ओटाराम देवासी को भी भजनलाल सरकार की नीतियों से असहमति है?
या फिर क्या यह ग्रामीण और पशुपालक वोट बैंक को साधने की कोशिश में किया गया 'डैमेज कंट्रोल' था?

संयम लोढ़ा का प्रहार: विपक्ष से ज्यादा तीखे तेवर

इस पूरे मामले पर पूर्व विधायक और मुख्यमंत्री के पूर्व सलाहकार संयम लोढ़ा ने सोशल मीडिया और जनसभाओं में खुलकर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "गांवों को घेरने और चराई रोकने वाली नीतियां जमीन से जुड़े लोगों के खिलाफ हैं।"

लोढ़ा का यह बयान सत्ता के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है क्योंकि वे भले अब पद पर नहीं हैं, लेकिन अभी भी दक्षिण राजस्थान की राजनीति में भारी प्रभाव रखते हैं।

प्रशासन ने किया दो भागों में बंटवारा, आंदोलन हुआ सफल

प्रशासन की ओर से वाडा खेड़ा जोड़ कंजर्वेशन क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करने और चराई शुल्क पूरी तरह समाप्त करने की घोषणा की गई। एक भाग को पशुपालकों के लिए खोला जाएगा, जबकि दूसरा हिस्सा काले हिरणों के लिए आरक्षित रहेगा। साथ ही चराई मार्गों की बहाली पर भी सहमति बनी।

राजनीतिक संदेश साफ है

यह घटना केवल पशुपालकों की समस्या नहीं रही — यह सत्तारूढ़ भाजपा के भीतर असंतोष और सत्ता-संगठन के संतुलन की परीक्षा बन चुकी है।

ओटाराम देवासी की भूमिका जहां दबाव झेलते मंत्री की रही, वहीं भाजपा नेताओं का सरकार के खिलाफ खड़ा होना आने वाले समय में कई नए समीकरणों की आहट देता है।

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