ड्रामा' बनाम 'धोखा': प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की ताजपोशी की कहानी

प्रधानमंत्री बनने के बाद जल्द ही वी.पी. सिंह और उप प्रधानमंत्री देवीलाल के बीच मतभेद उभरने लगे।

प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह

25 जून – भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह) का कार्यकाल भारतीय राजनीति के सबसे निर्णायक और विवादास्पद कालखंडों में से एक रहा। 1989 में प्रधानमंत्री बनने से लेकर मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने तक, वी.पी. सिंह ने सत्ता और समाज दोनों में गहरी हलचल मचा दी। इस लेख में हम उनके शासन के प्रमुख पड़ावों और उससे जुड़े विवादों का संक्षिप्त लेकिन व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं।दिसंबर 1989 में जनता दल की सरकार बनी और प्रधानमंत्री पद के लिए वी.पी. सिंह, चौधरी देवीलाल और चंद्रशेखर जैसे वरिष्ठ नेता दावेदार थे। कुलदीप नैयर की सलाह पर देवीलाल ने संसदीय दल की बैठक में अप्रत्याशित रूप से वी.पी. सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा, जिससे एक राजनीतिक 'ड्रामा' रच गया। संतोष भारतीय के अनुसार, चंद्रशेखर को इसकी कोई भनक नहीं थी और वे स्तब्ध रह गए। विरोधियों ने वी.पी. सिंह पर आरोप लगाया कि उन्होंने धोखे से प्रधानमंत्री पद हासिल किया।

देवीलाल-चौटाला विवाद और मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी
प्रधानमंत्री बनने के बाद जल्द ही वी.पी. सिंह और उप प्रधानमंत्री देवीलाल के बीच मतभेद उभरने लगे। देवीलाल के बेटे ओम प्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद हुए मेहम उपचुनाव में हिंसा और धांधली के आरोप लगे, जिसमें कई लोगों की जानें गईं। इसके बाद चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, जिससे देवीलाल नाराज हो गए। उन्होंने दोबारा चौटाला को मुख्यमंत्री बनवाया, जिससे सरकार में असंतोष फैल गया। अंततः वी.पी. सिंह ने खुद का इस्तीफा देने की धमकी दी, जिससे चौटाला को हटाना पड़ा और अंततः देवीलाल को भी मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया गया।

मंडल आयोग लागू करने का ऐतिहासिक फैसला
6 अगस्त 1990 को वी.पी. सिंह ने एक अप्रत्याशित कदम उठाया – उन्होंने कैबिनेट बैठक में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा कर दी। आयोग ने 27% आरक्षण की सिफारिश की थी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए। 13 अगस्त 1990 को आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी गई और कुल आरक्षण 49.5% तक पहुंच गया। विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला राजनीतिक रूप से देवीलाल की 'कमंडल रैली' को काटने के लिए लिया गया "मास्टरस्ट्रोक" था।

मंडल विरोध और आत्मदाह की आग
इस घोषणा के बाद देशभर में खासकर उत्तर भारत के छात्रों में भारी असंतोष फैल गया। लखनऊ, पटना, जयपुर और दिल्ली जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए। दिल्ली में देशबंधु कॉलेज के छात्र राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह की कोशिश की, जिससे देशभर में आंदोलन और तेज हो गया। कई छात्रों ने खुद को आग लगाने की कोशिश की और समाज में गहरी विभाजन रेखा खिंच गई।

'कमंडल' की राजनीति और वी.पी. सिंह सरकार का पतन
जब मंडल से उपजा आक्रोश चरम पर था, भाजपा ने 'कमंडल' की रणनीति अपनाई। लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से राम रथ यात्रा शुरू की। वी.पी. सिंह ने 23 अक्टूबर को आडवाणी को गिरफ्तार करवाया, जिससे भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया। सरकार अल्पमत में आ गई और गिर गई। वी.पी. सिंह ने इस कदम को अपनी "धर्मनिरपेक्ष" छवि बचाने के रूप में पेश किया।

मंडल पर न्यायपालिका की मुहर और 'क्रीमी लेयर' की परिभाषा
मंडल आयोग की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने 27% OBC आरक्षण को संवैधानिक ठहराया, लेकिन 'क्रीमी लेयर' को इस दायरे से बाहर रखने का निर्देश दिया। बाद में, 2008 में उच्च शिक्षण संस्थानों में भी OBC आरक्षण को वैध ठहराया गया।

दीर्घकालिक असर: मंडल से बदली भारतीय राजनीति
मंडल आयोग लागू होने के बाद भारत की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण बदला और ओबीसी नेतृत्व उभर कर सामने आया। बिहार और उत्तर प्रदेश में ऊंची जातियों की राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई, जबकि लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे नेताओं का वर्चस्व बढ़ा। एक समय ऐसा भी आया जब कहा गया – "मंडल के बाद भारत खड़ा हो गया।"