NCP के सुप्रीमो: Sharad Pawar का बगावत से है पुराना नाता, कभी खुद ने खोला मोर्चा तो कभी Rajiv Gandhi से ठन गई। इसलिए बनानी पड़ी Congress से हटकर नई पार्टी

Sharad Pawar का बगावत से है पुराना नाता, कभी खुद ने खोला मोर्चा तो कभी Rajiv Gandhi से ठन गई। इसलिए बनानी पड़ी Congress से हटकर नई पार्टी
sharad panwar and sonia ghandhi
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शरद पवार यानि की हिंदुस्तान की सियासत में ऐसा एक नाम जिसके आगे सियासत के धुरंधरों ने पानी भरा है. लेकिन अब कुछ ऐसा हुआ है कि शरद पवार अपने ही भतीजे अजीत पवार के सामने गच्चा खा गए. 

खैर अजीत पवार भतीजे भी तो उन शरद पवार के ही है जिन्होंने 1978 में बसंत दादा पाटिल से बगावत कर ना केवल उनका तख़्त हिला दिया बल्कि खुद महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुखमंत्री बन बैठे थे. इतिहास अपने आप को कभी न कभी तो  दोहराता ही है. 

बगावत से शरद पवार का भी पुराना नाता है. कभी उन्होंने खुद बगावत की कभी उनके खिलाफ बगावत हुई. आज ऐसी ही बगावत के एक किस्से का जिक्र करेंगे जब बगावत के चलते शरद पवार ने NCP का गठन किया. 

NCP का  गठन भले बाद में हुआ लेकिन उसकी भूमिका बनना 1996 से  शुरू हो जाती है जब शरद पवार बारामती से लोकसभा के लिए चुने जाते है और दिल्ली में त्रिशंकु सरकार बनती  है. नरसिम्हा राव को कांग्रेस की हार के कारण अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देना पड़ता है और कांग्रेस के अगले अध्यक्ष बनते है सीताराम केसरी. उसी बीच अटल बिहारी वाजपेयी की तेरह दिन वाली सरकार गिर जाती है और अगले प्रधानमंत्री बनते है एच डी देवेगौड़ा जिन्हे प्रधानमंत्री बनाने में सीताराम केसरी ने बड़ी भूमिका अदा की.

शरद पवार अपनी किताब में लिखते है कि सीताराम केसरी खुद चाहते थे कि देवेगौड़ा ज्यादा दिन प्रधानमंत्री ना रहे क्योकि केसरी की खुद की महत्वकांक्षाए प्रधानमंत्री पद के लिए थी. 

अध्यक्ष पद पर बैठकर सीताराम केसरी बिसात बिछाना शुरु करते है और फाइनली 11 अप्रैल 1997 को देवेगौड़ा सरकार भंग हो जाती है. इसका ठीकरा केसरी के सिर फूटता है . कांग्रेस में सीताराम केसरी का बढ़ता पावर और उनके काम करने का तरीका कांग्रेस के कुछ नेताओ को बिलकुल भी रास नहीं आ रहा था और कांग्रेस के भीतर कुछ नेताओ का एक दल बन गया जिसने तय किया कि सीताराम केसरी का बढ़ता पावर उनके लिए बड़ा ही घातक साबित हो सकता है.इन्ही नेताओ में शरद पवार भी शामिल थे. 

सच्चाई भी यही थी कि सीताराम केसरी जिस स्टाइल से काम कर रहे थे उसे देखकर कांग्रेस के नेताओ में उनके खिलाफ लगातार असंतोष उबल रहा था लेकिन केसरी पर गाँधी परिवार का पूरा - पूरा हाथ था. 

सीताराम केसरी ने जब दुबारा कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा तो कुछ कांग्रेसी उनके खिलाफ हो गए जिनमे शरद पवार , राजेश पायलट सहित ऐ आर अंतुले शामिल थे लेकिन केसरी फिर से अध्यक्ष पद का चुनाव जीत लेते है और यही से शरद पवार की कांग्रेस से दूरियां बढ़ना शुरू होती है. 

अक्सर शरद पवार को कांग्रेस से निकालने के लिए जिम्मेदार उत्तरदायी कारण सीताराम केसरी का विरोध मानते है लेकिन शरद पवार अपनी आत्मकथा में एक दूसरे कारण का खुलासा करते है. 

दुबारा अध्यक्ष बनने के बाद अगले चुनावो में सीताराम केसरी के नेतृत्व में हुए. कांग्रेस भाजपा के मुकाबले पीछे रह जाती है लिहाजा अब सोनिया गाँधी को कांग्रेस का नेतृत्व देने की कवायद शुरू होती है. बाकि के नेताओ के साथ शरद पवार भी उन नेताओ में शामिल थे जो सोनिया गाँधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत कर रहे थे. 

लेकिन शरद पवार स्वीकार करते है कि उनके और सोनिया गाँधी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे. पहला कारण यह था कि राजीव गाँधी खुद शरद पवार को पसंद नहीं करते थे और दूसरा यह कि बसंत दादा पाटिल की सरकार के खिलाफ विद्रोह कर इंदिरा गाँधी को पटखनी देते हुए शरद पंवार ने महाराष्ट्र में PDF सरकार का गठन करवाया था. 

खैर आगे बढ़ते है. शरद पवार को लेकर दूसरे भी ऐसे तमाम कारण थे जिनको आधार बनाकर गाँधी परिवार के कुछ वफादार नेता सोनिया गाँधी के कान भर रहे थे. शरद पवार खुलकर लिखते है कि सोनिया गाँधी उनसे किस तरह से नाराज रहा करती थी. वे यहाँ तक स्वीकार करते है कि वे जब भी कोई डिसीजन लेते थे तो सोनिया गाँधी का व्यवहार उसके ठीक उलटा होता था. 

बहरहाल तभी एक दूसरा वाकया भी होता है जो सोनिया गाँधी और शरद पवार के रिश्तो में खटास पैदा कर देता है. सोनिया गाँधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की कवायद के बीच कांग्रेस अपने नियमो में संशोधन कर देती है और सोनिया गाँधी को CPP का अध्यक्ष बनाया जाता है. CPP अध्यक्ष बनने के लिए लोकसभा या फिर राज्यसभा का सदस्य होना जरुरी था लेकिन सोनिया गाँधी को CPP अध्यक्ष बनाने के लिए इस नियम को ताक पर रखा जाता है. 

शरद पवार को यह बात नागवार गुज़री क्योकि पवार खुद CPP के अध्यक्ष बनना चाहते थे. अब सोनिया गाँधी कांग्रेस और CPP दोनों की एक साथ अध्यक्ष थी.और शरद पवार की सोनिया गाँधी से लगातार दूरिया बढ़ती जाती है. 

इसी बीच एक दुसरी घटना का भी जिक्र कर लेते है. 17 अप्रैल को संसद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर जाती है और 21 अप्रैल को सोनिया गाँधी राष्ट्रपति से मिलकर समर्थन का दावा करती है. शरद पवार थोड़े दुखी मन से लिखते है कि उस वक्त लोकसभा में पार्टी के नेता वे थे लेकिन राष्ट्रपति के पास जाने से पहले सोनिया गाँधी ने उनसे सलाह लेना भी उचित नहीं समझा. 

लेकिन जब मुलायम सिंह ने कांग्रेस को समर्थन देने से मना आकर दिया तो सोनिया गाँधी और कांग्रेस की उम्मीद हवा में उड़ गई. 

खैर अब एक अंतिम घटना का जिक्र कर लेते है जिसके बाद कांग्रेस से शरद पवार की विदाई हो गई. 13 वे लोकसभा चुनावों के लिए भूमिका तैयार हो रही थी और कांग्रेस इस असमंजस में थी कि चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाए. 

क्योकि भाजपा सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उछाल चुकी थी. तभी 15 मई 1999 को सोनिया गाँधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी [CWC} की एक मीटिंग बुलाई इस मीटिंग में सोनिया गाँधी ने CWC सदस्यों से स्पष्ट विचार रखने को कहा कि-

"मेरा जन्म भारत से बाहर हुआ है यदि यह विषय चुनाव अभियान के मुद्दे के रूप में उठाया गया तो इसका क्या असर पड़ेगा."

अर्जुन सिंह, गुलाब नबी आजाद अम्बिका सोनी और एके अंटोनी जैसे नेताओ ने तो ठीक वैसी ही हामी भर दी जैसी सोनिया गाँधी को चाहिए थी लेकिन पीए संगमा ने बोलकर दूसरा खेल कर दिया और पीए संगमा का समर्थन करने वालों में तारीक अनवर और शरद पवार शामिल थे. 

पीए संगमा ने उस मीटिंग में थोड़ा तीखा बोलते हुए कांग्रेस को आगाह कर दिया कि सोनिया गाँधी के विदेशी मूल का होने की पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. 

इसके बाद सोनिया गाँधी इस बात पर प्रतिक्रिया ना देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देती है और उसके बाद कांग्रेस में बड़ा बवाल हो जाता है. दिल्ली में प्रदर्शन होने लगते है और इस बात का ठीकरा फूटता है पीए संगमा तारीक अनवर और शरद पवार पर. 

आनन फानन में ये तीनो नेता फिर सोनिया गाँधी को एक पत्र लिखकर फिर से वही बात दोहरा देते है तो कांग्रेस का सब्र जवाब दे गया और तुरंत CWC की मीटिंग बुलाकर पीए संगमा, तारीक अनवर सहित शरद पवार को कांग्रेस से 6 साल के लिए बर्खास्त कर दिया जाता है. 

शरद पवार अपनी किताब में लिखते है कि 10 जनपथ पर वफादारों का जो भी उन्मादी प्रदर्शन हो रहा था और जो भी सारा खेल चल रहा था वह सब अर्जुन सिंह का किया धरा था. 

कांग्रेस से निकाल देने के बाद इन तीनो नेताओ ने तय किया कि कांग्रेस की मूल विचारधारा और संस्कृति को आगे बढ़ने के लिए एक अलग पार्टी का गठन किया जाए. 

10 जून को मुंबई के सम्मूखखण्ड ऑडिटोरियम में विधिवत रूप से NCP की घोषणा हुई. NCP के चुनाव चिन्ह की भी एक रोचक कहानी है. शरद पवार पहले तो चाहते थे कि उन्हें चरखे वाला चिह्न आवंटित किया जाए लेकिन वह चिह्न पहले से कांग्रेस के नाम से आवंटित था. इसके बाद NCP को एक घड़ी का चिन्ह आवंटित हुआ जिसमे दस बजकर दस मिनट का समय दिखाया गया है. 

क्योकि सम्मूखखण्ड स्टेडियम में जब NCP के नेताओ की मीटिंग शुरू हुई तो वह समय दस जून की तारीख को दस बजकर दस मिनट था. 

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