कंवरलाल मीणा ने किया सरेंडर: राजस्थान की सियासत में 'अयोग्यता' का नया मोड़
जयपुर। राजस्थान की सियासत में पिछले कई दिनों से गरमाया बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की अयोग्यता का मुद्दा अब एक नए मोड़ पर आ गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मीणा ने अदालत में सरेंडर कर दिया है, जिससे उनकी विधानसभा सदस्यता पर तलवार लटक गई है। इस पूरे प्रकरण ने राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका पर कांग्रेस को बीजेपी पर हमला बोलने का मौका दिया है
राजस्थान के अंता (बारां) से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा ने आज ट्रायल कोर्ट में सरेंडर किया। मीणा को 20 साल पुराने केस में 3 साल की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचे विधायक नारा लगाने पर अपने ही समर्थकों पर भड़क गए।
इसके बाद गुस्से कोर्ट के अंदर चले गए। यहां से उन्हें अकलेरा (झालावाड़) जेल में भेज दिया गया है। दरअसल, 7 मई 2025 को कंवरलाल की विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया था।
उन्हें दो सप्ताह में ट्रायल कोर्ट के सामने सरेंडर करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद ट्रायल कोर्ट ने 9 मई को गिरफ्तारी वारंट जारी किया था।
क्या था पूरा मामला?
बारां जिले की अंता विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा को एक 20 साल पुराने आपराधिक मामले में दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई गई थी।
बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा को तीन साल की सजा के बावजूद विधानसभा सदस्यता खत्म नहीं करने के मुद्दे को कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा- बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की विधायकी पर स्पीकर ने बुधवार तक फैसला नहीं किया तो सुप्रीम कोर्ट में कंटेम्प्ट याचिका दायर की जाएगी।
उन्होंने कहा- हम इस मुद्दे को छोड़ेंगे नहीं, इसमें लड़ाई लड़ेंगे। दो साल से ज्यादा की सजा होते ही विधायकी खत्म करने का नियम है, राहुल गांधी की सदस्यता 24 घंटे में खम कर दी थी, अब बीजेपी विधायक के मामले में स्पीकर पक्षपात कर रहे हैं।
ट्रायल कोर्ट ने 2 अप्रैल 2018 को उन्हें दोषमुक्त कर दिया था, लेकिन एडीजे कोर्ट, अकलेरा ने फैसले को पलटते हुए दोषी ठहराया। इसके बाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। 7 मई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज करते हुए दो सप्ताह में सरेंडर करने का आदेश दिया था।
सरेंडर और अयोग्यता का पेच
कंवरलाल मीणा ने अब कोर्ट में सरेंडर कर दिया है। कानूनी जानकारों के मुताबिक, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत यदि किसी विधायक या सांसद को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो उसकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। ऐसे में कंवरलाल मीणा की सदस्यता खत्म होना तय माना जा रहा है।
हालांकि, इस बीच विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी की भूमिका पर कांग्रेस लगातार सवाल उठा रही थी। कांग्रेस का आरोप था कि अध्यक्ष जानबूझकर देरी कर रहे हैं और बीजेपी की तरफ से राज्यपाल से सजा माफ करवाने की साजिश रची जा रही है।
राज्यपाल और सजा माफी का मुद्दा
इस पूरे मामले में राज्यपाल की भूमिका भी चर्चा का विषय रही। हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रतीक कासलिवाल के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त है कि वे किसी भी दोषी की सजा को माफ, निलंबित या कम कर सकते हैं। हालांकि, यदि मामला अभी भी किसी अदालत में लंबित है, तो राज्यपाल हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
कांग्रेस ने 20 मई को राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा था, जिसमें अनुच्छेद 161 के तहत कंवरलाल मीणा को सजा माफी न दिए जाने की मांग की गई थी। ज्ञापन में 'लिलि थॉमस बनाम भारत सरकार' केस का हवाला देते हुए कहा गया था कि दो साल या अधिक की सजा वाले विधायक या सांसद स्वतः अयोग्य हो जाते हैं। कांग्रेस ने यह भी कहा था कि यदि राज्य सरकार राज्यपाल के माध्यम से अनुचित लाभ दिलाने की कोशिश कर रही है, तो न्यायहित में राज्यपाल को ऐसा प्रयास अस्वीकार करना चाहिए।
यदि राज्यपाल द्वारा सजा माफ कर दी जाती, तो विधायक की सदस्यता बरकरार रह सकती थी और 6 वर्षों तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध भी लागू नहीं होता। हालांकि, राजस्थान में अब तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला है, जहां किसी विधायक को सजा माफी का लाभ मिला हो। कंवरलाल मीणा के सरेंडर के बाद अब राज्यपाल की इस शक्ति का प्रयोग होने की संभावना कम ही रह गई है।
कांग्रेस का तीखा हमला
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस मुद्दे पर विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर तीखा हमला बोला था। उन्होंने कहा था, "कंवरलाल मीणा के मामले में स्पीकर कुंडली मारकर बैठे हैं। वो आरएसएस और बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे हैं।" कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर लगातार बीजेपी को घेर रही थी और उस पर संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगा रही थी।
आगे क्या?
कंवरलाल मीणा के सरेंडर के बाद अब गेंद पूरी तरह से विधानसभा अध्यक्ष के पाले में है। कानूनन उनकी सदस्यता खत्म होनी चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष को अब इस पर औपचारिक निर्णय लेना होगा। इसके बाद अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव की संभावना बढ़ जाएगी।
इस पूरे प्रकरण ने राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर बहस छेड़ दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इस स्थिति से कैसे निपटती है और कांग्रेस इस मुद्दे को कितनी दूर तक ले जाती है। यह मामला न केवल एक विधायक की कुर्सी का है, बल्कि राजनीतिक नैतिकता और न्याय के सिद्धांतों का भी है।