ये सोने का ताज नहीं, कांटों का ताज है: ऑपरेशन सिंदूर पर प्रियंका गांधी का संसद में जोरदार भाषण
नई दिल्ली, लोकसभा, 29 जुलाई 2025 –
लोकसभा में चल रही ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चर्चा के दौरान कांग्रेस महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने सत्ता पक्ष को आड़े हाथों लेते हुए एक भावनात्मक, साहसी और कटाक्ष से भरा भाषण दिया। उन्होंने 22 अप्रैल 2025 को बेसारन वैली, पहलगाम में हुए आतंकी हमले की बारीकियों को सामने लाते हुए केंद्र सरकार की जवाबदेही और सुरक्षा में चूक पर तीखा सवाल उठाया।
शुरुआत श्रद्धांजलि और सेना को नमन से
प्रियंका गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत भारतीय सेना के शौर्य को नमन करते हुए की। उन्होंने कहा –
“हमारी आज़ादी अहिंसक आंदोलन से मिली, लेकिन उसे बनाए रखने में सेना का बड़ा योगदान है।”
सरकार पर गंभीर आरोप: "भगवान भरोसे छोड़ दिया गया"
उन्होंने बताया कि 26 नागरिकों को उनके परिवारों के सामने चुन-चुन कर मारा गया। उन्होंने शुभम द्विवेदी के परिवार की करुण कहानी सुनाते हुए कहा –
“जब हमला हुआ, तब एक भी सुरक्षा कर्मी वहां मौजूद नहीं था। सरकार ने हमें अनाथ छोड़ दिया था।”
गृह मंत्री और प्रधानमंत्री पर सीधा हमला
प्रियंका गांधी ने गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा –
“हमले से महज दो हफ्ते पहले वे कश्मीर का सुरक्षा मूल्यांकन करने गए थे, फिर ये हमला कैसे हो गया?”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हमले के बाद कोई जवाबदेही नहीं ली गई –
“क्या आईबी चीफ ने इस्तीफा दिया? क्या गृह मंत्री ने ज़िम्मेदारी ली?”
प्रधानमंत्री पर कटाक्ष करते हुए बोलीं –
“श्रेय लेना आता है, लेकिन जिम्मेदारी लेने की ताकत नहीं है। ओलंपिक का मेडल हो या युद्ध—हर चीज़ का श्रेय लेते हैं, लेकिन सीजफायर पर चुप्पी क्यों?”
टीआरएफ और खुफिया तंत्र की विफलता
उन्होंने बताया कि टीआरएफ (The Resistance Front) नामक आतंकवादी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली, जो 2020 से सक्रिय है और अब तक 25 आतंकी हमले कर चुका है।
“अगर आप जानते थे कि टीआरएफ इतना सक्रिय है, तो सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही थीं?”
सीजफायर पर अमेरिकी राष्ट्रपति की घोषणा
प्रियंका गांधी ने सवाल उठाया कि ऑपरेशन सिंदूर के सीजफायर की घोषणा भारत सरकार की बजाय अमेरिकी राष्ट्रपति ने क्यों की:
“ये हमारे प्रधानमंत्री की गैरजिम्मेदारी का सबसे बड़ा प्रतीक है।”
भावनात्मक क्षण: "मेरी मां के आँसू तब गिरे थे…"
गृह मंत्री की टिप्पणी पर कि सोनिया गांधी के आँसू क्यों आए, प्रियंका गांधी ने जवाब देते हुए कहा:
“मेरी मां के आँसू तब गिरे थे जब उनके पति को आतंकवादियों ने शहीद किया। मैं उस दर्द को जानती हूं, इसलिए आज यहां खड़ी हूं।”
“नेतृत्व सिर्फ श्रेय लेने से नहीं, जवाबदेही से बनता है”
उन्होंने सरकार की पीआर राजनीति पर हमला बोलते हुए कहा –
“देश खोखले भाषण नहीं सुनना चाहता, सच्चाई चाहता है। यह सोने का ताज नहीं, कांटों का ताज है।”
मारे गए 25 भारतीयों के नाम पढ़े
अपने भाषण के अंत में प्रियंका गांधी ने उन 25 नागरिकों के नाम पढ़े जो पहलगाम हमले में मारे गए थे, ताकि संसद को यह याद रहे कि वे केवल आंकड़े नहीं, हमारे अपने थे।प्रियंका गांधी वाड्रा का यह भाषण सिर्फ राजनीतिक आलोचना नहीं था, बल्कि उन्होंने सरकार को संवेदनशीलता, जवाबदेही और पारदर्शिता की कसौटी पर कसने की कोशिश की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि विपक्ष सेना के साथ खड़ा है, लेकिन सरकार से जवाबदेही की मांग करना उसका कर्तव्य है।
• सैनिकों को नमन और हमले का संदर्भ: उन्होंने सबसे पहले देश की रक्षा करने वाले सैनिकों और अधिकारियों को नमन किया। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष के नेताओं ने ऑपरेशन सिंदूर, आतंकवाद और देश की रक्षा की बात की, इतिहास का पाठ भी पढ़ाया, लेकिन 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में 26 देशवासियों पर हुए हमले के बारे में यह नहीं बताया कि यह हमला कैसे और क्यों हुआ।
• सरकार के प्रचार पर सवाल: प्रियंका गांधी ने कहा कि सरकार कुछ समय से यह प्रचार कर रही थी कि कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया है और शांति है। प्रधानमंत्री ने लोगों से कश्मीर जाकर घूमने और जमीन खरीदने के लिए भी कहा था। इसी प्रचार के बीच कानपुर के शुभम द्विवेदी और उनका परिवार कश्मीर गया, जिनकी 6 महीने पहले ही शादी हुई थी।
• पहलगाम हमले का विस्तृत वर्णन: उन्होंने बताया कि 22 अप्रैल 2025 को बेसारन वैली में शुभम द्विवेदी और उनकी पत्नी एक स्टॉल पर खड़े थे तभी चार आतंकवादी जंगल से निकलकर शुभम को उनकी पत्नी के सामने मार डालते हैं। इसके बाद वे एक घंटे तक पूरे वैली में चुन-चुनकर 26 लोगों को मारते हैं।
• सुरक्षा व्यवस्था में चूक: शुभम की पत्नी के हवाले से उन्होंने कहा कि इस पूरे एक घंटे के दौरान उन्हें कोई सुरक्षाकर्मी या सैनिक नहीं दिखा। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने उन्हें वहाँ "अनाथ छोड़ दिया था"। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सरकार को यह मालूम नहीं था कि रोज़ 1000 से 1500 पर्यटक वहाँ जाते हैं और वहाँ पहुँचने का रास्ता जंगल के ज़रिए है, जहाँ से निकलना मुश्किल होगा। वहाँ फर्स्ट एड का भी कोई इंतज़ाम नहीं था।
• जवाबदेही पर सवाल: उन्होंने पूछा कि देश के नागरिकों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी है – प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री या एनएसए की? उन्होंने बताया कि हमले से सिर्फ दो हफ़्ते पहले गृह मंत्री कश्मीर गए थे सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेने और उन्होंने वहाँ कहा था कि आतंकवाद पर विजय प्राप्त हुई है। हमले के तीन महीने बाद जेएनके के गवर्नर ने लापरवाही की ज़िम्मेदारी ली लेकिन कोई सवाल नहीं उठा और बात वहीं खत्म हो गई।
• टीआरएफ (The Resistance Front) पर जानकारी: प्रियंका गांधी ने बताया कि टीआरएफ ने हमले की ज़िम्मेदारी ली है। यह गुट 2019 में बना और अप्रैल 2020 से 22 अप्रैल 2025 तक इसने 25 आतंकवादी हमले किए। उन्होंने यह भी बताया कि 2020 से 2025 तक टीआरएफ ने 41 सेना और सुरक्षाकर्मियों, 27 नागरिकों की हत्या की और 54 लोगों को घायल किया। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार ने टीआरएफ को आतंकवादी संगठन का दर्जा देने में तीन साल (2023 तक) क्यों लगाए जबकि यह 2020 से सक्रिय था। उन्होंने इसे "बहुत बड़ी विफलता" बताया कि सरकार को ऐसे हमले की योजना की जानकारी नहीं थी।
• जिम्मेदारियों से पलायन और इस्तीफ़े की मांग: उन्होंने पूछा कि आईबी चीफ़ या किसी ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया। गृह मंत्री के कार्यक्षेत्र में इंटेलिजेंस ब्यूरो आता है, तो उन्होंने इस्तीफा क्यों नहीं दिया? उन्होंने वर्तमान सरकार पर अपनी ज़िम्मेदारियों से बचने और इतिहास में जाने का आरोप लगाया। उन्होंने 2008 के मुंबई हमलों का ज़िक्र किया और कहा कि तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और देश के गृह मंत्री ने ज़िम्मेदारी लेकर इस्तीफा दिया था, जो एक "जवाबदेही" थी। उन्होंने कहा कि राजनाथ सिंह पुलवामा, उरी और पठानकोट के समय गृह मंत्री थे, और अमित शाह के नाक के नीचे मणिपुर जल गया, दिल्ली में दंगे हुए, पहलगाम में हमला हुआ, फिर भी वे अपने पद पर बने हुए हैं।
• ऑपरेशन सिंदूर पर आलोचना:
◦ उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन विपक्ष ने भी किया, लेकिन इस ऑपरेशन का श्रेय प्रधानमंत्री लेना चाहते हैं।
◦ उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि "जंग होते ही रुक गई" और इस रुकावट का ऐलान भारतीय सेना या सरकार ने नहीं, बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने किया। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री की "गैर ज़िम्मेदारी का सबसे बड़ा प्रतीक" बताया।
◦ उन्होंने गृह मंत्री के बयान की आलोचना की, जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के पास "शरण में आने के अलावा कोई चारा ही नहीं था"। प्रियंका गांधी ने पूछा कि क्यों शरण दी गई।
◦ उन्होंने इस बात पर सवाल उठाया कि यदि ऑपरेशन के दौरान भारतीय जहाजों का नुकसान नहीं हुआ तो सरकार सदन में यह साफ-साफ कहने से क्यों डर रही है।
• विदेश नीति पर सवाल: उन्होंने कहा कि यदि ऑपरेशन सिंदूर का मकसद पाकिस्तान को सबक सिखाना था तो वह अधूरा है, क्योंकि ऑपरेशन के बाद एक पाकिस्तानी जनरल जिसके हाथ खून से सने थे, अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ लंच खा रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार की "राजनीतिक कायरता बेमिसाल है" और उन्हें देशवासियों के प्रति जवाबदेही का एहसास नहीं है।
• नेतृत्व और जवाबदेही का महत्व: उन्होंने कहा कि देश का नेतृत्व केवल उपलब्धियों का श्रेय लेने से मजबूत नहीं होता, बल्कि सफलता और विफलता दोनों की जिम्मेदारी लेने से बुलंद होता है। उन्होंने कहा कि "जब सरकार झूठी और कायर हो तो वे बहादुर से बहादुर सेना के साहस और पराक्रम को भी कमजोर कर देती है"।
• पीड़ितों का सम्मान: उन्होंने कहा कि पहलगाम में जो हुआ उससे हर देशवासी के दिल पर चोट पहुंची है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि 25 भारतीय नागरिकों को कोई सुरक्षा नहीं दी गई। अंत में उन्होंने पहलगाम हमले में मारे गए 25 भारतीय नागरिकों के नाम सदन में पढ़कर उन्हें श्रद्धांजलि दी, ताकि यह एहसास हो कि वे "किसी राजनीतिक बिसात के मोहरे नहीं थे", बल्कि "इस देश के बेटे और शहीद हैं"।