Highlights
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गोवा मुक्ति (1961): सगत सिंह के नेतृत्व में 36 घंटे में गोवा पुर्तगाली कब्जे से मुक्त।
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$10,000 का इनाम: पुर्तगाल ने उनकी बहादुरी से बौखलाकर इनाम घोषित किया।
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नाथू ला-चो ला युद्ध (1967): चीन को करारा जवाब, भारतीय सेना की निर्णायक जीत।
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1971 युद्ध: हेलीकॉप्टर से मेघना नदी पार कर सेना को ढाका पहुंचाया, युद्ध का रुख बदला।
आज गोवा अपना 38वां राज्य दिवस मना रहा है। इस अवसर पर जहां गोवा की सांस्कृतिक विरासत, विकास और पर्यटन की चर्चा होती है, वहीं एक ऐसे वीर सपूत को याद करना भी जरूरी है, जिसने गोवा को भारत की गोद में लाने में अहम भूमिका निभाई — लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह राठौड़।
गोवा की आज़ादी और सगत सिंह राठौड़ का नेतृत्व
गोवा 450 वर्षों तक पुर्तगाली शासन के अधीन रहा। 1947 में भारत आज़ाद हुआ, लेकिन गोवा पर विदेशी शासन जारी रहा। साल 1961 में भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया था, जिसका उद्देश्य था — पुर्तगाल के कब्जे से गोवा, दमन और दीव को मुक्त कराना। इस ऐतिहासिक सैन्य अभियान में ब्रिगेडियर सगत सिंह (उस समय रैंक) ने पैरा स्पेशल फोर्सेज की कमान संभालते हुए अद्वितीय सैन्य नेतृत्व का परिचय दिया।
उनकी बटालियन ने गोवा में तेजी से प्रवेश किया और बिना ज्यादा रक्तपात के पुर्तगाली सेना को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। पुर्तगाल इस हार से इतना बौखला गया कि उसने सगत सिंह के सिर पर 10,000 डॉलर का इनाम घोषित कर दिया।
आज गोवा देश का एक समृद्ध, सांस्कृतिक और पर्यटन केंद्र है। लेकिन शायद कम ही लोग जानते हैं कि अगर सगत सिंह जैसे योद्धा न होते, तो गोवा की कहानी कुछ और होती।
इस सैन्य अभियान में ब्रिगेडियर सगत सिंह राठौड़, जिन्होंने बाद में लेफ्टिनेंट जनरल का पद प्राप्त किया, ने पैरा स्पेशल फोर्सेज का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने मात्र 36 घंटों में गोवा को आज़ाद करा लिया।
30 मई 1987 को गोवा को मिला राज्य का दर्जा
हालांकि गोवा 19 दिसंबर 1961 को भारत का हिस्सा बना, लेकिन 30 मई 1987 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। आज जब गोवा अपने राज्यत्व का उत्सव मना रहा है, हमें उन सेनानायकों को याद करना चाहिए, जिन्होंने इसकी नींव रखी।
भारत के सैन्य इतिहास में कई वीर योद्धाओं ने अपने पराक्रम से दुश्मनों के दांत खट्टे किए, लेकिन कुछ नाम ऐसे होते हैं जो इतिहास की दिशा ही बदल देते हैं। ऐसा ही नाम है लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह का — एक ऐसा योद्धा, जिसने न केवल गोवा की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि बांग्लादेश के निर्माण में भी निर्णायक योगदान दिया।
चीन को दिया करारा जवाब
1967 में, जब चीन ने फिर से हिमाकत करने की कोशिश की, तो सगत सिंह ने अपने सैन्य कौशल से ऐसा जवाब दिया कि चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा। उनके नेतृत्व में नाथू ला और चो ला की लड़ाइयों में भारतीय सेना ने चीन को भारी नुकसान पहुंचाया। ये युद्ध उस समय के दुर्लभ उदाहरण हैं, जब भारतीय सेना ने चीनी सेना को खुली चुनौती दी और विजयी रही।
1971: बांग्लादेश की आज़ादी की इबारत
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में सगत सिंह ने इतिहास रच दिया। उन्होंने मेघना नदी को हेलीकॉप्टर से पार करवा कर भारतीय सेना को सीधे ढाका के रास्ते पर ला खड़ा किया — ऐसा पहली बार हुआ जब इतनी बड़ी सैन्य टुकड़ी को हेलीकॉप्टर से रात्रि में ट्रांसपोर्ट किया गया। इस साहसिक कदम ने युद्ध का रुख बदल दिया।
पाकिस्तान का सरेंडर और ऐतिहासिक फोटो
सगत सिंह उन वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों में से एक थे, जो ढाका में हुए पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के समय मौजूद थे। 16 दिसंबर 1971 को ली गई ऐतिहासिक फोटो में वे भारतीय सैन्य नेतृत्व के साथ खड़े नजर आते हैं, जब जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया।