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रजवाड़ी रीतें लोगों को आकर्षित कर रही हैं। आकर्षण जिज्ञासा तो उत्पन्न करता ही है। जिज्ञासा शांत करने का सबसे बड़ा ठेका आज गूगल जी ने अपने नाम छुड़ा ही रखा है। पर गूगल मनगढंत नहीं बताता, लोगों की राय रखता है।
जैसे-जैसे इंटरनेट का दायरा बढ़ा है वैसे-वैसे स्थानीयता ने भी विस्तार पाया है।
लोग अपने रीति रिवाजों को पहले से भी अधिक उत्साह से मनाने लगे हैं। हालांकि सीधे तौर पर इसका कारण बाजार ही है और बाजार की रौनक ही घर तक आती है। जो भी हो, लोग अधिक उत्साहित और उदार हुए हैं।
वे अपने आस-पास के लोगों की कला, परंपरा और संस्कृति में रुचि लेने लगे हैं।
इसी क्रम में राजस्थान के त्योहार जो कभी राजस्थान तक ही सीमित थे, सच कहूँ तो राजस्थानी लोक तक ही सीमित क्योंकि आधिकारिक रूप से उत्सव तो उन्हें आज भी नहीं माना है ।
राजस्थान के अपने दो त्योहार जिनमें इस प्रदेश की आत्मा प्रतिबिंबित होती है- तीज और गणगौर। दोनों ही उत्सवों को राजस्थान सरकार नहीं जानती इसलिए इन पर कोई अवकाश नहीं। पर उत्सव अवकाशों की दरकार थोड़े रखते हैं। लोग छुट्टी लेकर मनायेंगे।
खैर! जो त्योहार अब तक स्थानीय थे वे अब बाहर के लोगों के भी ध्यान में आ रहे हैं।
रजवाड़ी रीतें लोगों को आकर्षित कर रही हैं। आकर्षण जिज्ञासा तो उत्पन्न करता ही है। जिज्ञासा शांत करने का सबसे बड़ा ठेका आज गूगल जी ने अपने नाम छुड़ा ही रखा है। पर गूगल मनगढंत नहीं बताता, लोगों की राय रखता है।
आज तीज-सिन्झारा के बारे सब जानना चाहते हैं पर सटीक जवाब मिलता नहीं। बड़े-बूढ़े गूगल पर नहीं और नई पीढी बड़े-बूढों संग नहीं। इसलिए यह नव विवाहिता की चूड़ी- बिंदी और नए कपड़ों का पर्याय बन गया।
जिस परिवार में नवविवाहिता नहीं वह परिवार भी तीज-तींवार मनाते हैं। दरअस्ल हमारा हर रंगीन उत्सव जुड़ा हुआ है स्त्रियों से और स्त्रियाँ जुड़ी हैं रसोई से। रसोई से छुट्टी मिले तो सेलिब्रेशन हो।
इसलिए जीमण-जूटण पहले दिन ही बना-जमाकर अगले दिन फुर्सत से त्योहार की मौज मस्ती की जा सकती है। विवाहों में इसीलिए मेळ (प्रीति भोज) का आयोजन एक दिन पहले कर लिया जाता है।
सिंझारा भी तीज की पूर्व संध्या (सिंझ्या) का (झारा) भोज है। शाम दाल-बाटी-चूरमा बन कर तैयार हो जायेगा। क्योंकि अभी मेहंदी भी लगानी है। फिर मेहंदी अभी की इंस्टेंट हिना तो है नहीं की अभी मांडी और अभी रच गयी!
सुबह भिगोते तो शाम को रंग छोड़ती। रंग का भी आह्वान किया जाता। "दिल्ली को, आगरा को, जैपर को, जोधपर को, मेड़ता को, पाली को और अंत में सूजत (सौजत) को रंग इण मेंदी में आ ज्यो।" और यह रोप दिया बीचों बीच खेजड़ी का सफेद घोचा।
दिन भर में सफेद घोचे में जो ललाई आयेगी उससे अनुमान होगा कि मेहंदी ने रंग छोड़ दिया। इधर जिमण तैयार उधर मेहंदी। अब कोई काम नहीं। इट्स मेहंदी टाइम।
जहाँ मेहंदी है वहाँ सारे शृंगार उपस्थित होंगे ही। घर-परिवार में किसी की नई शादी हुई है तो सिन्झारा जरा जोर-शोर से मनीजता है। नव वधू के ब्यावले बरस उसके पीहर या ससुराल से आयी मिठाई के लावणे बंटीजते हैं और लावणे का शुद्ध अर्थ हुआ - प्रचार। जैसा सिन्झारा वैसी चर्चा।
जितने घर लावणा जाएगा उतने घर पूछा जायेगा- बेटी के ससुराल से या बहू के मायके से क्या आया? ध्यान रहे सिन्झारा नवविवाहिता बेटी और बहू दोनों के लिए घाला जाता है।
इसमें दो वस्तुएँ अनिवार्य है- लहरिया और मिठाई ( विशेषकर घेवर) बाकि तो इसका कोई ओर छोर नहीं। शोभा में श्यामी होने के लिए लोग क्या नहीं कर लेते।
-नीलू शेखावत