स्मृति शेष : एक जीवन, एक यज्ञ, एक युग: भगवानसिंह रोलसाहबसर: एक युगद्रष्टा, समाजशिल्पी और पथप्रदर्शक

भगवानसिंह रोलसाहबसर: एक युगद्रष्टा, समाजशिल्पी और पथप्रदर्शक
दिल्ली में एक साक्षात्कार के दौरान वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप बीदावत के साथ श्री भगवान सिंह रोलसाहबसर
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Highlights

  • 1989 में संघप्रमुख बनने के बाद उन्होंने श्री क्षत्रिय युवक संघ को समर्पित जीवन जिया।

  • उनके नेतृत्व में संघ का विस्तार राजस्थान-गुजरात से पूरे भारत तक हुआ।

  • उन्होंने संगठन को संस्थागत रूप दिया और समाज से गहरा जुड़ाव स्थापित किया।

  • स्वामी अड़गड़ानंद जी से प्रेरित होकर उन्होंने आध्यात्मिक पथ को भी संघ कार्य से जोड़ा।

क्षत्रिय युवक संघ निर्माण, समाज सेवा और आत्मोन्नति के क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व के रूप में श्री भगवानसिंह रोलसाहबसर का जीवन एक आदर्श, एक तपस्या और एक मिशन रहा है। उनका सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र, समाज और संस्कृति को समर्पित रहा। 5 जून 2025 को उनके निधन से न केवल श्री क्षत्रिय युवक संघ, बल्कि सम्पूर्ण भारतीय समाज ने एक सच्चे साधक, पथप्रदर्शक और विचारक को खो दिया।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

भगवानसिंह जी का जन्म 2 फरवरी 1944 को राजस्थान के सीकर जिले के फतेहपुर तहसील स्थित रोलसाहबसर गांव में हुआ। आप पिता श्री मेघसिंहजी एवं माताजी श्रीमती गोम कंवर की पांचवीं संतान थे। दुर्भाग्यवश, उनके जन्म के कुछ ही दिन पूर्व उनके पिताजी का निधन हो गया, जिससे प्रारंभ से ही जीवन संघर्षमय रहा।

1955 तक उन्होंने गांव में ही प्राथमिक शिक्षा पूरी की। इसके बाद 1960 में चमड़िया कॉलेज फतेहपुर से मैट्रिक और फिर रुईया कॉलेज रामगढ़ शेखावाटी से प्री-यूनिवर्सिटी की पढ़ाई की। 1961 में लोहिया कॉलेज चुरू में प्रवेश लिया, जहाँ उनका संपर्क संघ से और पूज्य तनसिंह जी से हुआ।


संघ से जुड़ाव और समर्पण

1961 में रतनगढ़ में आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने भाग लिया, जो उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ। तनसिंह जी के आदेश पर चुरू छोड़कर वे जयपुर पधारे और राजस्थान कॉलेज से स्नातक किया। यहीं राजपूत छात्रावास शाखा का दायित्व संभालकर वे संघ के प्रति पूर्णतः समर्पित हो गए।

1964-65 में दिल्ली में तनसिंह जी के सान्निध्य में रहकर कार्य किया। 1967 में जब तनसिंह जी ने सिवाना (बाड़मेर) में व्यवसाय आरंभ किया, तब भगवानसिंह जी उनके पहले सहयोगी बने। यहीं ठाकुर तेजसिंह जी की सुपुत्री से उनका विवाह हुआ।


नेतृत्व की ओर बढ़ते कदम

1979 में तनसिंह जी के देहावसान के बाद उन्होंने नारायणसिंह जी में तनसिंह जी का ही प्रतिबिंब पाया और उनके साथ सतत रूप से जुड़कर संघ कार्य को आगे बढ़ाया। 1989 में नारायणसिंह जी के निधन के पश्चात, भगवानसिंह जी ने संघ प्रमुख का दायित्व पूर्ण निष्ठा और त्याग के साथ संभाला।

उनके नेतृत्व में संघ की गतिविधियों में अभूतपूर्व विस्तार हुआ —

  • पूर्वी राजस्थान से गुजरात के समुद्रतट तक

  • पुरुषों से आगे बढ़कर महिलाओं और बालिकाओं के प्रशिक्षण शिविर

  • दंपति शिविर, पारिवारिक शाखाएँ

  • जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर, कुचामन और गुजरात के सुरेन्द्रनगर में स्थायी कार्यालय

  • ‘आलोक आश्रम’ (बाड़मेर) का निर्माण

  • सीकर में ‘श्री दुर्गा महिला विकास संस्थान’ की स्थापना


राष्ट्रीय विस्तार और सामाजिक समरसता

भगवानसिंह जी के नेतृत्व में संघ का विस्तार महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और दक्षिण भारत तक हुआ। उन्होंने कुल 330 से अधिक शिविरों में भागीदारी की। सामाजिक अपेक्षाओं को समझते हुए उन्होंने न केवल समाज को संगठित किया, बल्कि राजनीति में भी समाज के नेतृत्व को प्रेरित किया।

‘श्री प्रताप फाउंडेशन’ जैसे संस्थागत प्रयासों से उन्होंने राजनीतिज्ञों को आम समाज से जोड़ने का कार्य किया।


आध्यात्मिक यात्रा और यथार्थ गीता

उनका जीवन केवल संगठन और सेवा तक सीमित नहीं था। उन्होंने स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज के सान्निध्य में ‘यथार्थ गीता’ के मूल भाव को आत्मसात किया और उसे पूरे देश में फैलाने का कार्य किया। राजस्थान से लेकर कोलकाता और दक्षिण भारत तक वे स्वामी जी का संदेश पहुंचाने में अग्रणी रहे।


संघ के संरक्षक के रूप में उत्तराधिकार

4 जुलाई 2021 को भगवानसिंह जी ने संघ की सर्वोच्च भूमिका से स्वयं को मुक्त कर श्री लक्ष्मण सिंह बैण्यांकाबास को संघ प्रमुख का दायित्व सौंपा और स्वयं संरक्षक व मार्गदर्शक की भूमिका में आ गए। उन्होंने स्वयं को अनासक्त, निर्विकार और निष्कलंक गुरु के रूप में स्थापित किया।


संघर्ष, सेवा और संकल्प का समर्पित जीवन

उनकी यात्रा एक कर्मयोगी, एक द्रष्टा और एक योगी की रही। उनकी दूरदृष्टि, अनुशासन, और समर्पण से श्री क्षत्रिय युवक संघ ने संगठनात्मक गहराई और सामाजिक स्वीकार्यता की ऊँचाइयों को छुआ।

5 जून 2025 को जयपुर में उनका देहावसान हुआ। लेकिन उनका जीवन, उनकी दृष्टि, उनके सिद्धांत और उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए अमर प्रेरणा बनकर रहेगा। माननीय भगवानसिंह जी रोलसाहबसर एक युगद्रष्टा थे जिन्होंने न केवल संगठन को दिशा दी, बल्कि समाज को आत्मबोध, आत्मगौरव और आत्मविकास का रास्ता दिखाया।

उनकी स्मृति चिरस्थायी है।
उनका जीवन एक दीपशिखा है, जो आने वाली पीढ़ियों को उजाला देती रहेगी।


वंदन | नमन | प्रणाम
माननीय भगवानसिंह जी रोलसाहबसर को समर्पित
"एक जीवन, एक यज्ञ, एक युग"

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