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करणी माता का जन्म 1387 ई. में सुआप (जोधपुर) में हुआ था, लेकिन उन्होंने जनहितार्थ अपनी कार्यस्थली तत्कालीन जांगल प्रदेश (बीकानेर) को बनाया। उनका जीवन एक ऐसी साधारण ग्रामीण कन्या का है, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों को पार कर एक पूजनीय देवी का स्थान प्राप्त किया।
उनकी शिक्षाएँ आत्मनिर्भरता पर जोर देती हैं ("वास्तविक बल अपनी आत्मा का है")। उन्होंने गौ सेवा और प्रकृति संरक्षण का भी समर्थन किया, जैसा कि 'ओरण' (जंगलों) की स्थापना से स्पष्ट होता है, जहाँ गायें और अन्य वन्यजीव स्वतंत्र रूप से घूमते हैं। उनके मंदिर परिसर में चूहे भी संरक्षित हैं, जिन्हें 'काबा' (करणी के बालक) कहा जाता है। पाठ इस बात पर प्रकाश डालता है कि त्याग की प्रतीक ऐसी शक्तिशाली स्त्रियों के प्रति श्रद्धा रखने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
करणी माता, एक साधारण ग्रामीण कन्या होते हुए भी, अपनी आध्यात्मिक शक्ति के बल पर सत्ता की धुरी और निर्माता बन गईं। उन्होंने स्वयं को इस शक्ति से निर्लिप्त रखते हुए निरंतर सेवा भाव में लीन रखा।
उन्होंने राव बीका को आशीर्वाद दिया, यह भविष्यवाणी करते हुए कि उनका बीकानेर जोधपुर से भी अधिक यशस्वी होगा, और उन्हें बीकानेर शहर की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। कठिन परिस्थितियों में भी उनके आशीर्वाद को इस क्षेत्र के शासकों और जनता द्वारा चमत्कारी रूप से अनुभव किया गया है।
करणी माता मंदिर का शासकों के लिए, विशेषकर संकट काल में, ऐतिहासिक रूप से गहरा महत्व रहा है। युद्ध में विजय पाने या विपत्तियों से मुक्ति चाहने वाले राजाओं को इस दरबार में झुकने पर सफलता और अभय दोनों प्राप्त हुए हैं। यह माना जाता है कि मंदिर धन प्रदान करता है, मौजूदा समृद्धि को स्थिर करता है, और विकास को बढ़ावा देता है।
Jaipur | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कल (22 मई को) राजस्थान यात्रा पर हैं। सुना है, वह बीकानेर आएंगे और देशनोक स्थित करणी माता मंदिर में दर्शन करेंगे। देश के 103 विशेष सौंदर्यकृत रेलवे स्टेशनों का उद्घाटन वे यही से करेंगे। एक बड़े सैन्य ऑपरेशन के बाद उनका यह प्रथम औपचारिक और बड़ा कार्यक्रम है।
शासकों की उपस्थिति, विशेषकर संकट काल में उपस्थिति देशनोक के लिए नई नहीं है। अपने शत्रु से बैर लेने या त्राण पाने निकले राजवी जब जब इस दरबार में झुके, उन्हें जय और अभय दोनों मिले। श्री विहीन को राजलक्ष्मी मिली, मिले हुए की स्थिर हुई और स्थिर की पल्लवित-पुष्पित हुई।
सुदीर्घ सीमावर्ती राजस्थान का आसन्न संकट क्षेत्र तो सैकड़ों वर्षों से इसी शक्ति स्वरुपा की ओट लेकर जूझा, खपा और बना। रजवट की सहाय करने कभी वह तनोट राया बनी, कभी तेमड़ा राय, कभी स्वांगिया, कभी हिंगलाज तो कभी करणी करनल
लौकिक दृष्टि से साधारण, तिस पर भी स्त्री होकर अपनी साधना के बल से शक्ति सम्पन्न बनकर सत्ता की धुरी और निर्मात्री बन जाना तथा स्वयं उससे निर्लिप्त रहकर सतत सेवा भाव में निरत रहने के दुर्लभ उदाहरण आपको राजस्थान में ही मिलेंगे। ऐसी तप:पूत स्त्री विभूतियाँ त्याग में ही सर्वस्व समेटे होती हैं इसलिए उनमें श्रद्धा रखने वाला प्रत्येक मानव अपना मनोवांछित उनसे पा ही लेता है।
यह राजेश्वरी जब द्रवित होतीं है तो पद दलित रिड़मल को राठौड़ों का सिरमौर, राव जोधा को नौकुंटी मारवाड़ का अधिपति और बीका के बीकानेर की कीर्ति युगों युगों तक अक्षुण्ण कर देती है।
राव बीका जब बीकानेर नगर की स्थापना से पूर्व माँ के पास पहुंचे तो करणी माता ने बीकाजी को आशीर्वाद दिया- 'बीका थारो बीकाणो जोधाणा स सवायो बाजसी।"
माँ करणी ने ही बीकानेर की नींव रखी। तब से आज तक हर कठिन परिस्थिति में माता का आशीर्वाद चमत्कारिक रूप यहां की सत्ता और जनता ने अनुभव किया है। अनेक वंशों की कुल देवी होने के साथ साथ ये इस क्षेत्र की अधिष्ठात्रि देवी भी हैं। हर जाति के लोगों में इनके प्रति आस्था है।
मां करणी की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है।
देवत्व त्वरित, अवतरित नहीं, क्रमशः अर्जित सम्पत्ति है। कल्पना कीजिये एक कुरूप कन्या जिसे जन्म के साथ ही स्वजनों की उपेक्षा का पात्र बनना पड़े, 'अर्थो हि कन्या परकीय एव' के (कन्या वस्तुतः पराई वस्तु है) आदर्श के चलते अनिच्छा से ही सही, विवाह बंधन में बंधना पड़े, प्रतिकूल परिस्थिति वश पति गृह त्यागना पड़े और उसके अस्थायी निवास को राज-कोप का भागी बनना पड़े, उस स्त्री की जीवटता किस प्रखरतम बिंदु को छूती होगी? वह अपना जीवन रस कहां से लेती होगी? निश्चय ही अपने आप से। क्योंकि वास्तविक बल तो अपनी आत्मा का है।
'ब्रह्म तेजो बलं बलम्'
ऐसी तेजस्विनी स्त्रियों के साथ चामत्कारिक घटनाएं अपने आप जुड़ती चली जाती हैं।
करणी जी का अवतरण वि. सं. 1444 अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार तदनुसार 20 सितम्बर, 1387 ई. को सुआप (जोधपुर) में मेहाजी किनिया के घर में हुआ था। किन्तु जनहितार्थ उन्होंने अपनी कार्यस्थली तत्कालीन जांगल प्रदेश (बीकानेर) को बनाया।
न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते।
अल्प आयु वाले व्यक्ति भी तप के कारण आदरणीय हो जाते हैं। लोगों ने उन्हें आदर भाव से देवी स्वरूपा मानकर पूजा। मनुष्य ही नहीं, प्राणी मात्र के प्रति उनके ह्रदय में अनुराग रहा।
गौ सेवा तथा प्रकृति संरक्षण हेतु 'ओरण' (अरण्य) की स्थापना से गाएं और अन्य वन्यजीव तो निर्भय विचरण करते ही हैं, चूहे जैसा उत्पाती प्राणी भी उनके प्रांगण में संरक्षण पाता है।
कहते हैं, यहां चूहे हैं पर बिल्ली नहीं। चमत्कार की बात यह कि मंदिर परिसर से बाहर चूहों का कहीं कोई निशान नहीं। (मंदिर में इनको काबा यानी ‘करनी बालक’ बोलते हैं)
सनातन का साधना पथ 'देवो भूत्वा देवं यजेत' वाला है। शक्ति की उपासना शक्ति बनकर करने वाली ऐसी ही सन्नारियां समाज और राष्ट्र की सुदृढ़ता का आधार बनती हैं। वे जितनी तत्परता से संतति को 'राष्ट्रधर्म हित सर्वस्व त्याग' सिखाकर गृहस्थ जीवन को ऊंचाई प्रदान कर सकती हैं, उतनी ही तत्परता से युद्ध भूमि में खड़ी होकर राष्ट्र रक्षा का भार भी सहर्ष संभाल लेती हैं।
अपने भाते से पूरी फौज को जिमाना चमत्कार से परे वह वास्तविकता है जो सरहद पर सिर तानकर डटे राजस्थान की छोटी सी अकिंचन कन्या का अपनी जमीं के प्रति समर्पण का भाव दर्शाता है।
अपनी दूरदर्शिता से झोंपड़ी में बैठकर सम्राट चंद्रगुप्त का निर्माण करने वाले चाणक्य को तो हम सब जानते हैं, खुले आसमान तले गाएं चराते हुए, कई सौ वर्षों तक सीमाओं पर पीढ़ी दर पीढ़ी खपने का साहस रखने वाले, धर्म, धरती और स्त्री के लिए तलवार उठाने वाले, कला, साहित्य और संस्कृति की अभूतपूर्व उन्नति करने वाले योद्धाओं का निर्माण करने वाली और उनको पग पग पर मार्गदर्शन देने वाली मतिमती देवियों को जानते हैं?
बड़े बड़े राज्य और राजवंशों के भाग्य का निर्धारण करने वाली इन दिव्यात्माओं के प्रति राजस्थान सदैव नतमस्तक रहा। उसने अष्टभुजा दुर्गा इन्हीं में देखी और देवत्व के सर्वोच्च सोपान पर बिठाकर पूजा।
हमारे यहां देवत्व का निर्धारण त्याग से होता है। ।आप जिस भूमि पर कदम रखने वाले हैं, वह महज पर्यटन केंद्र नहीं है, त्यागमयी तपोभूमि है। जहाँ गौ रक्षार्थ प्राण त्यागने वाले गौसेवक दशरथ मेघवाल देव रूप में पूजे जाते हैं। यहां मस्तक झुकाने वालों पर राजलक्ष्मी, भाग्यलक्ष्मी सदा मेहरबान रही है। वैसे पुरुषार्थवान के मनोरथ पूर्ण होते ही हैं।
'चराति चरतो भगः' - चलेनेवाले का भाग्य चलता है। आप पर भी माँ करणी मेहर करे और आप निर्विघ्न राष्ट्र आराधन में संलग्न रहें।
इति शुभम्।
- नीलू शेखावत