Highlights
- एक गोलाबारी में पीरू सिंह का शरीर छलनी हो गया, पर फिर भी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। आखिरी बंकर नष्ट करने से पहले उनके अंतिम शब्द थे:
"अबे हट जा, रास्ता छोड़ – तुझे भी निपटा दूँगा!
राजस्थान की वीर भूमि ने न जाने कितने रणबांकुरों को जन्म दिया है, जिन्होंने भारत माँ की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। ऐसे ही एक अमर सपूत थे शहीद कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत, जिन्हें उनकी अदम्य वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
जन्म और जीवन:
शहीद पीरू सिंह का जन्म 20 मई 1918 को झुंझुनू ज़िले के रामपुरा गाँव में हुआ था। बचपन से ही अनुशासनप्रिय और साहसी स्वभाव के पीरू सिंह बचपन से सेना में जाने का सपना देखते थे। 1936 में वे राजपुताना राइफल्स रेजिमेंट में भर्ती हुए और यहीं से उनकी वीरता की गाथा शुरू हुई।
1948 – भारत-पाक युद्ध में अद्वितीय बलिदान:
जम्मू-कश्मीर के टिथवाल सेक्टर में 1948 में जब भारत-पाक के बीच युद्ध छिड़ा, तब पीरू सिंह ने असंभव को संभव कर दिखाया। पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जा किए गए बंकरों को खाली कराने के अभियान में वे आगे बढ़े। दुश्मनों की गोलियों और ग्रेनेडों के बीच, उन्होंने अकेले 5 पाकिस्तानी बंकर नष्ट किए।
उनकी शहादत को भारत कभी नहीं भूलेगा। उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान "परमवीर चक्र" से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। आज भी राजपुताना राइफल्स और भारतीय सेना में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है।