टिप्पणी: झालावाड़ में 'स्कूल की दीवार नहीं, सरकार की लापरवाही गिरी है

झालावाड़ में 'स्कूल की दीवार नहीं, सरकार की लापरवाही गिरी है
Rajasthan School Accident
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अब समय है कि राजस्थान की जनता पूछे —
"कौन ज़िम्मेदार है इस नरसंहार का?"

झालावाड़ के पीपलोदी गांव में सरकारी स्कूल की बिल्डिंग गिरने से 6 मासूम बच्चों की मौत और 30 से अधिक गंभीर घायल बच्चों की खबर, किसी प्राकृतिक आपदा का नतीजा नहीं है। यह दुर्घटना नहीं, बल्कि एक सरकारी लापरवाही का साक्षात मलबा है, जिसमें न सिर्फ ईंटें और दीवारें गिरीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था की संवेदनहीनता उजागर हो गई।

सरकार की चुप्पी से बड़ा कोई हादसा नहीं
हर बार की तरह इस बार भी शिक्षा मंत्री का बयान आया — "इलाज सरकार के खर्चे पर होगा" और "जांच के आदेश दे दिए गए हैं"। लेकिन ये घिसे-पिटे वाक्य अब प्रतीक्षा कक्ष में पड़ी लाशों के बीच खोखले और शर्मनाक लगते हैं। सवाल उठता है — क्या ये बच्चे सरकार के लिए सिर्फ आंकड़े थे?

सरकारी स्कूलों की दशा पूरे राजस्थान में चिंताजनक है। दीवारों में दरारें, छतें जर्जर, फर्नीचर टूटा हुआ और बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव। क्या शिक्षा विभाग के अधिकारियों की आंखें बंद थीं? क्या इस स्कूल की बिल्डिंग का कभी निरीक्षण हुआ था? और अगर हुआ था तो क्या सिर्फ कागज़ों में?

बजट तो आया, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं
राजस्थान सरकार हर साल शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट पास करती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत में न तो स्कूलों की हालत सुधरती है, न ही शिक्षकों की स्थिति। अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल मात्र नाम के रह गए हैं — भवन खस्ताहाल, टीचर अनुपस्थित और जिम्मेदारी शून्य।

ऐसी घटनाओं से स्पष्ट है कि राजस्थान सरकार की प्राथमिकता सूची में ग्रामीण शिक्षा और बच्चों की सुरक्षा कहीं नहीं है।

इंसाफ कब मिलेगा?
सरकार हादसे के बाद जांच के आदेश तो दे देती है, लेकिन कभी किसी अधिकारी पर आपराधिक मुकदमा चलाया गया है? क्या किसी इंजीनियर या ठेकेदार को सस्पेंड करके सरकार ने अपने कर्तव्यों से मुक्ति पा ली?

5 बच्चों की मौत कोई मामूली बात नहीं है। ये किसी एक गांव का नहीं, पूरे राज्य की सरकार पर सीधा आरोप है। अगर इस घटना के दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती, तो यह साफ संदेश होगा कि राजस्थान सरकार के लिए सरकारी स्कूलों के बच्चे सिर्फ वोट बैंक के आंकड़े हैं — इंसान नहीं।

एक सवाल शिक्षा मंत्री से:
मदन दिलावर जी, यदि यह हादसा किसी निजी स्कूल में होता, तो क्या अब तक उस स्कूल की मान्यता रद्द नहीं कर दी जाती? तो फिर जब सरकारी स्कूल की लापरवाही सामने है, तो आपका विभाग कब जवाबदेह बनेगा?

अंत में सिर्फ यही कह सकते हैं:
इन मासूमों की मौत सिर्फ ईंटों के नीचे दबकर नहीं हुई,
वे दबे थे— सरकार की असंवेदनशीलता, लापरवाही और भ्रष्टाचार के मलबे में।

अब समय है कि राजस्थान की जनता पूछे —
"कौन ज़िम्मेदार है इस नरसंहार का?"

अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो अगली दीवार आपके बच्चे पर गिर सकती है।

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