Highlights
- • अदम्य साहस व निर्णायक नेतृत्व: उन्होंने हैदराबाद (1948), गोवा मुक्ति (1961), नाथूला (1967), और बांग्लादेश निर्माण (1971) में असाधारण शौर्य व नेतृत्व दिखाया, अक्सर आदेशों के विरुद्ध जाकर भी।
- • अभूतपूर्व रणनीति: वे 'उद्देश्य से परे' सोचने वाले रणनीतिकार थे, जिन्होंने पारंपरिक से हटकर जोखिम भरी योजनाएँ बनाईं।
- • सिपाहियों के जनरल: एक सवार से लेफ्टिनेंट जनरल तक उनका सफर बेजोड़ है; उन्हें "जनरलों के जनरल" कहा गया, वे सरल व्यक्तित्व के धनी थे।
- • भारत रत्न की मांग: पद्म भूषण से सम्मानित जनरल सगत सिंह के लिए भारत रत्न की पुरजोर मांग की जा रही है।
Jaipur | भारतीय सेना के अदम्य साहस, दूरदृष्टि और अद्वितीय नेतृत्व के प्रतिमान, लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह, पद्मभूषण, पी.वी.एस.एम. की 106वीं जयंती के अवसर पर जयपुर के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब स्थित पृथ्वीराज चौहान सभागार में एक गरिमामय श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया।
यूनाइटेड ग्लोबल पीस फाउंडेशन (UGPF) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जनरल सगत सिंह के सैन्य जीवन, नेतृत्व और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को गर्व और श्रद्धा के साथ याद किया गया।
समारोह में उपस्थित वक्ताओं ने एक स्वर में जनरल सगत सिंह को 'भारत रत्न' दिए जाने की पुरजोर मांग उठाई, यह कहते हुए कि उनकी वीरता और त्याग आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
वक्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि सैन्य पाठ्यक्रमों में उन्हें पढ़ाए जाने के बावजूद, भारत के इस महान नायक का नाम आम जनता के बीच उतना विस्मृत कर दिया गया है, जितना उन्हें याद किया जाना चाहिए।
जनरल सगत सिंह के शौर्य और रणनीतिक दूरदर्शिता पर वक्ताओं के प्रभावी उद्बोधन:
• लेफ्टिनेंट जनरल मानधाता सिंह, जो सेना के एक जबरदस्त अधिकारी और परम विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित हैं, ने जनरल सगत सिंह को "जनरलों के जनरल" और "एक अद्वितीय जनरल" बताया।
उन्होंने कहा कि सगत सिंह जैसे सेनानायक युग में एक बार होते हैं और उनका साहस, संकल्प और नेतृत्व आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरणा देता रहेगा। उन्होंने गोवा मुक्ति, बांग्लादेश निर्माण, नाथुला और मिजो हिल्स में शांति कायम करने में उनके अद्वितीय योगदान को सराहा।
• ब्रिगेडियर सौरभ सिंह शेखावत, भारतीय सेना के सबसे अधिक वीरता पदकों से सम्मानित अधिकारी, ने जनरल सगत सिंह को "अद्भुत प्रतिमान" और "दृष्टा और निर्णायक योद्धा" बताया, जिनके लिए भारत रत्न जैसे सम्मान मिलने ही तय किए जाने चाहिए। उन्होंने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे जनरल सगत सिंह ने एक 'सवार' से लेफ्टिनेंट जनरल के पद तक का सफर तय किया, जिसका दूसरा कोई उदाहरण देखने को नहीं मिलता।
उन्होंने 1948 के हैदराबाद ऑपरेशन का जिक्र किया, जहां मेजर सगत सिंह ने कंपनी कमांडर के रूप में बीदर को रजाकारों के नरसंहार से बचाया।
गोवा मुक्ति अभियान (1961) में उन्होंने पैरा ब्रिगेड कमांडर के रूप में मात्र 45-46 वर्ष की उम्र में पैरा बेसिक कोर्स किया, जिसकी अधिकतम आयु 30 साल होती है, और गोवा को तय समय से बहुत पहले ही पुर्तगालियों से मुक्त कराया। पुर्तगालियों के 'अंतिम व्यक्ति तक लड़ने' के आदेश के बावजूद, पैरा ब्रिगेड की गति इतनी तेज थी कि 3300 पुर्तगाली सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
नाथुला संघर्ष (1967) में, चीन के बढ़ते बिल्ड-अप को भांपते हुए, उन्होंने पहले ही तोपखाना और यूनिट्स तैनात कर दीं। चीनी हमले के बावजूद, उन्होंने आदेशों के विपरीत जाकर आर्टिलरी फायर खोलने की अनुमति दी और स्वयं फॉरवर्ड पोस्ट में पहुंचकर जवानों का हौसला बढ़ाया। इस निर्णायक कार्रवाई के कारण चीनी सेना को भारी नुकसान हुआ और 53 साल तक सीमा पर शांति रही।
1971 का बांग्लादेश युद्ध उनके नेतृत्व का सबसे बड़ा उदाहरण था, जब फोर कोर कमांडर के रूप में उन्होंने योजनाबद्ध न होने के बावजूद मेघना नदी को 'हेलीकॉप्टर ब्रिज' बनाकर पार कराया। इस असाधारण गति के कारण, 9 दिसंबर को क्रॉसिंग के बाद, 16 दिसंबर तक ढाका में पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया।
ब्रिगेडियर शेखावत ने उन्हें "भारत के डगलस मैकार्थर और रोमेल" कहकर संबोधित किया।
• ब्रिगेडियर जितेंद्र सिंह शेखावत, यूनाइटेड ग्लोबल पीस फाउंडेशन के निदेशक, ने जनरल सगत सिंह को एक "महान रणनीतिकार" बताया, जिनकी सोच "ऑब्जेक्टिव से भी परे" थी। उन्होंने कहा कि उनकी रणनीतियाँ आज भी सैन्य इतिहास और सैन्य पाठ्यक्रमों में गूंज रही हैं। उन्होंने नाथुला और मेघना क्रॉसिंग में उनके "दुस्साहस" और "जोखिम लेने की क्षमता" की प्रशंसा की, जिसके कारण भारतीय सेना को विजय मिली।
• डायरेक्टर शक्ति सिंह बांदीकुई ने जनरल सगत सिंह की वीरता, रणनीति और अदम्य साहस को भारतीय सेना के इतिहास में एक "स्वर्णिम अध्याय" लिखने वाला बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गोवा को जिसे ब्रिटिशर्स, डच या फ्रांसीसी नहीं जीत पाए थे, उसे जनरल सगत सिंह ने मात्र 3 दिन में फतह कर भारत में मिलाया। उन्होंने कहा कि आज नाथुला यदि भारत का हिस्सा है और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश का जन्म हुआ है, तो उसके नायक जनरल सगत सिंह ही हैं।
• जनरल सगत सिंह के पुत्र कर्नल रणविजय सिंह ने अपने पिता की पढ़ने की आदत, उनके कठिन सैन्य कोर्स करने और शारीरिक रूप से अत्यंत मजबूत होने की बात कही।
यूनाइटेड ग्लोबल पीस फाउंडेशन की सराहनीय पहल:
वक्ताओं ने यूनाइटेड ग्लोबल पीस फाउंडेशन द्वारा ऐसे महान योद्धा को याद करने के लिए किए गए इस आयोजन की भूरी-भूरी प्रशंसा की। फाउंडेशन का उद्देश्य केवल अतीत के नायकों को याद करना नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को उनके जीवन से प्रेरणा देना भी है।
• फाउंडेशन पीछे रह रहे तबकों को शिक्षा और समाज सेवा के माध्यम से आगे लाने का प्रयास कर रहा है।
• इस अवसर पर, फाउंडेशन ने 15 आदिवासी बेटियों को लगभग 32 लाख रुपये की सहायता राशि का चेक सौंपा, ताकि वे आरएस और आईएएस जैसी परीक्षाओं की कोचिंग कर सकें और उन्हें हॉस्टल की सुविधा मिल सके। मेघराज सिंह रॉयल ने बताया कि उनकी संस्था उन बच्चों को गोद लेगी जो 90% से अधिक अंक लाते हैं और पैसों की कमी के कारण उनकी पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए।
• चेयरमैन मेघराज सिंह रॉयल पिछले 40 वर्षों से परोपकार के कार्यों में लगे हुए हैं, जिसमें बच्चियों के विवाह, गौशालाओं, बच्चों की पढ़ाई, पर्यावरण संरक्षण और आपदा राहत जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
• फाउंडेशन का 'धुन लाइफ प्रोजेक्ट' विशेष रूप से सराहा गया, जिसने जयपुर के 800 बीघा बंजर क्षेत्र को हरियाली में बदल दिया है, जिससे आसपास के 40-50 गांवों का भूजल स्तर ऊपर उठ गया है। इस प्रोजेक्ट ने ब्रिटेन के राजा किंग चार्ल्स और कतर सरकार का भी ध्यान आकर्षित किया है, और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधार्थी भी इस पर अध्ययन करने आ रहे हैं।
• यूनाइटेड ग्लोबल पीस फाउंडेशन का आह्वान है कि हर व्यक्ति मात्र एक रुपया प्रतिदिन (साल के ₹365) देकर इस "महान मिशन" का स्वयंसेवक बन सकता है, जिससे शिक्षा, रोजगार और आर्थिक क्रांति लाई जा सके और देश व मानवता के लिए काम किया जा सके।
समारोह में "सगत सिंह – शौर्य की प्रतिमूर्ति" विषय पर संगोष्ठी, वृत्तचित्र प्रदर्शन और देशभक्ति गीतों की प्रस्तुति ने समां बांध दिया। सेना के अधिकारी, वेटर्न्स, शिक्षाविद, सामाजिक संगठन और युवा बड़ी संख्या में उपस्थित रहे, जो इस आयोजन की महत्ता को दर्शाता है। यह समारोह न केवल एक महान योद्धा को श्रद्धांजलि थी, बल्कि एक ऐसी पहल की शुरुआत भी थी जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध है।