विशेष गहन पुनरीक्षण ने बढ़ाई गर्मी: बिहार में वोटर वेरिफिकेशन पर सियासी संग्राम

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पटना/नई दिल्ली, 19 अगस्त 2025।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR 2025) ने प्रदेश की राजनीति को गरमा दिया है। चुनाव आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का मकसद पात्र नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना और फर्जी नाम हटाना है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह अभियान दरअसल “वोट चोरी” की साजिश है।

क्या है पूरा मामला?

भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची की विशेष समीक्षा शुरू की है। आयोग का कहना है कि शहरीकरण, प्रवास और जनसंख्या बदलाव की वजह से पिछले 20 वर्षों में मतदाता सूचियों में भारी गड़बड़ियां हुई हैं। अब, नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले, इस सुधार को जरूरी माना गया है।

कानूनी आधार

संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को यह अधिकार देता है कि वह मतदाता सूची का प्रबंधन करे। अनुच्छेद 326 कहता है कि 18 वर्ष से ऊपर हर भारतीय नागरिक को वोट देने का अधिकार है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 आयोग को विशेष पुनरीक्षण की शक्ति देती है।

पुनरीक्षण की प्रक्रिया

यह पूरा अभियान पाँच चरणों में चल रहा है –

25 जून से 3 जुलाई 2025: घर-घर जाकर फॉर्म का वितरण।

25 जुलाई तक: फॉर्मों की वापसी।

26 जुलाई तक: BLO द्वारा फॉर्म अपलोड।

1 अगस्त 2025: प्रारंभिक सूची का प्रकाशन।

1 अगस्त से 1 सितंबर: आपत्तियाँ और दावे।

30 सितंबर 2025: अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन।

दस्तावेज़ों पर विवाद

सबसे बड़ा विवाद नागरिकता साबित करने के दस्तावेज़ों को लेकर है।

जिनका नाम 2003 या उससे पहले की सूची में है, उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा।

लेकिन 2003 के बाद जिनका नाम जुड़ा, उन्हें नागरिकता प्रमाणित करनी होगी।

आधार, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस या राशन कार्ड मान्य नहीं होंगे।

केवल जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षिक प्रमाण पत्र या स्थायी आवास प्रमाण पत्र जैसे 11 दस्तावेज़ ही मान्य होंगे।

विपक्ष का कहना है कि गरीबों, प्रवासियों और मज़दूरों के पास ये दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, जिससे लाखों पात्र मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं।

विपक्ष का हमला

कांग्रेस और आरजेडी ने इस प्रक्रिया को “वोट चोरी” करार दिया है। राहुल गांधी ने कहा कि यह लोकतंत्र पर हमला है, जबकि तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि लाखों बिहारी प्रवासी मज़दूरों के वोट छीनने की तैयारी हो रही है। पटना से दिल्ली तक विरोध-प्रदर्शन हो चुके हैं और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है।

चुनाव आयोग और सत्ता पक्ष का पक्ष

चुनाव आयोग का कहना है कि प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष है। हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक की जाएगी और हर नागरिक को आपत्ति दर्ज करने का अधिकार होगा। इसके लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन 1950 और NVSP पोर्टल भी उपलब्ध कराया गया है।
वहीं, भाजपा और लोजपा-रामविलास ने आयोग का समर्थन किया है। उनका आरोप है कि विपक्ष घुसपैठियों के वोट बचाने के लिए भ्रम फैला रहा है।

निर्णायक मोड़

अब सबकी निगाहें 30 सितंबर 2025 पर टिकी हैं, जब अंतिम मतदाता सूची जारी होगी। यही तय करेगा कि बिहार में लोकतंत्र और मजबूत होगा या फिर एक नया राजनीतिक संकट खड़ा होगा।

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