नई दिल्ली, 19 अगस्त 2025 | भारतीय राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया है। देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। धनखड़ का इस्तीफ़ा इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि वे कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ने वाले भारत के केवल तीसरे उपराष्ट्रपति बने।
इससे पहले 1969 में वी.वी. गिरी ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफ़ा दिया था और 2007 में भैरव सिंह शेखावत ने राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद पद छोड़ा था।
अब जब धनखड़ की कुर्सी खाली हो चुकी है, तो देश को नए उपराष्ट्रपति की तलाश है। इस बीच भाजपा ने बड़ा राजनीतिक दांव खेलते हुए अपने उम्मीदवार के तौर पर सीपी राधाकृष्णन का नाम घोषित किया है।
उपराष्ट्रपति पद की अहमियत
- भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है।
- वे राज्यसभा के सभापति होते हैं।
- बराबरी की स्थिति में निर्णायक वोट देने का अधिकार उन्हीं के पास होता है।
- राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में वे कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं।
- यानी यह पद केवल औपचारिक नहीं है, बल्कि संसदीय राजनीति का अहम स्तंभ है।
चुनाव की प्रक्रिया
- उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सांसद मिलकर करते हैं।
- चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व और गुप्त मतदान के जरिए होता है।
- किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 20 सांसदों का प्रस्ताव और 20 का समर्थन ज़रूरी है।
- विजेता का फैसला सांसदों की प्राथमिकता वाली वोटिंग से होता है।
कौन हैं सीपी राधाकृष्णन?
- सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक सफ़र लंबा और गहरी वैचारिक जड़ों से जुड़ा रहा है।
- वर्तमान में वे महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं।
- इससे पहले वे झारखंड, तेलंगाना और पुदुचेरी का कार्यभार संभाल चुके हैं।
- 1998 और 1999 में वे कोयंबटूर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए।
- वे तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
- 70 के दशक से ही वे आरएसएस और जनसंघ से जुड़े रहे हैं।
भाजपा ने राधाकृष्णन को क्यों चुना?
- भाजपा का यह फैसला केवल उम्मीदवार चुनने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई राजनीतिक रणनीतियाँ छिपी हैं:
- दक्षिण भारत पर फोकस – तमिलनाडु से आने वाले राधाकृष्णन को उतारकर भाजपा ने दक्षिण में अपनी पैठ मज़बूत करने का संदेश दिया है।
- संघ की पृष्ठभूमि – राधाकृष्णन आरएसएस से निकले नेता हैं, जो भाजपा की विचारधारा के प्रति निष्ठावान रहे हैं।
- ओबीसी फैक्टर – वे कोंगु वेल्लालर (ओबीसी समुदाय) से आते हैं। जगदीप धनखड़ भी ओबीसी समाज से थे। यह भाजपा की ओबीसी राजनीति को मज़बूती देता है।
- गैर-विवादित छवि – उनकी साफ-सुथरी छवि विपक्ष के लिए चुनौती है, क्योंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में व्हीप लागू नहीं होता और सांसद स्वतंत्र रूप से वोट डाल सकते हैं।
- पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश – भाजपा ने किसी बाहरी या गठबंधन नेता को नहीं, बल्कि अपने पुराने समर्पित कार्यकर्ता को चुना, जिससे संगठन को स्पष्ट संदेश गया।
राजनीतिक असर
- अब बड़ा सवाल यह है कि इस चुनाव का भारतीय राजनीति पर असर क्या होगा।
- क्या भाजपा दक्षिण भारत में अपनी पकड़ मज़बूत कर पाएगी?
- क्या विपक्ष एकजुट होकर मुकाबला करेगा या राधाकृष्णन की गैर-विवादित छवि विपक्षी खेमे में दरार डालेगी?
- क्या यह चुनाव भाजपा के लिए एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक साबित होगा?
- इन सवालों के जवाब आने वाले समय में भारतीय राजनीति के पूरे परिदृश्य को प्रभावित करेंगे।
उपराष्ट्रपति चुनाव की यह कहानी महज़ एक संवैधानिक पद तक सीमित नहीं है।
यह भाजपा की रणनीति, विपक्ष की मजबूरी और दक्षिण भारत की राजनीति—तीनों को एक साथ जोड़ती है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि सीपी राधाकृष्णन का नामांकन भारतीय राजनीति में कितना बड़ा असर डालता है।