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जब लाल सिंह कलक्ट्री में दाखिल हुए तो बसपा के लोग रोने लगे और गिड़गिड़ाते हुए नाम वापस नहीं लेने की अपील करते रहे। उन्होंने कहा कि हमारे साथ धोखा मत करो, लेकिन लाल सिंह राठौड़ ने नामांकन उठा लिया।
जालोर | जालोर सिरोही लोकसभा सीट पर अशोक गहलोत ने बसपा के प्रत्याशी लाल सिंह राठौड़ का नामांकन वापस करवा लिया। इस सीट पर यह लगातार दूसरी बार है जब बसपा के प्रत्याशी का नामांकन वापिस हुआ है। बेटे वैभव गहलोत के लिए चुनाव अभियान में जुटे अशोक गहलोत के सिपहसालार धर्मेन्द्र राठौड़ की इसमें बड़ी भूमिका रही है।
बसपा के जालोर—सिरोही प्रभारी हरीशचन्द्रसिंह गौड़ ने आरोप लगाया है कि इसे बिकना कहते हैं। यही नहीं लाल सिंह ने एससी—एसटी के साथ ही राजपूत समाज के साथ भी धोखा किया है। मीडिया ने जालोर में लाल सिंह राठौड़ से बात करने की कोशिश की, लेकिन वे धर्मेन्द्र राठौड़ की गाड़ी में बैठकर निकल गए। उन्होंने सिर्फ यह कहा कि पार्टी ने मेरी मांगें मान ली है।
गिड़गिड़ाते रहे प्रभारी
जब लाल सिंह कलक्ट्री में दाखिल हुए तो बसपा के लोग रोने लगे और गिड़गिड़ाते हुए नाम वापस नहीं लेने की अपील करते रहे। उन्होंने कहा कि हमारे साथ धोखा मत करो, लेकिन लाल सिंह राठौड़ ने नामांकन उठा लिया।
क्या पहले से था प्लान
जानकारों का यह मानना है धर्मेन्द्र राठौड़ ने यहां चुनाव जमाने से पहले ही लाल सिंह राठौड़ से संपर्क साधा था। यही नहीं ईडब्ल्यूएस के नाम पर हुए आयोजन में लाल सिंह राठौड़ ने ही खर्चा किया था। जब वैभव गहलोत का टिकट फाइनल हुआ, उससे पहले लाल सिंह राठौड़ की धर्मेन्द्र राठौड़ के माध्यम से अशोक गहलोत से मुलाकात हुई थी। इसके बाद लाल सिंह ने वैभव गहलोत को जब प्रत्याशी के तौर पर उतारा तो लाल सिंह ने देव दर्शन यात्रा करके मैदान में ताल ठोकी थी। और बाद में वे बसपा से टिकट लाए थे। ऐसे में कहा जा रहा है कि क्या लाल सिंह राठौड़ का पहले से प्लान था कि वह बसपा को इसी तरह से धोखा देंगे। जालोर—सिरोही सीट पर बसपा के साथ लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ है। इससे पहले भागीरथ विश्नोई 2019 में विड्रॉल हुए थे। साथ ही अशोक गहलोत 2009 और 2021 में भी बसपा का कांग्रेस में विलय करवा चुके हैं। ऐसे में एससी एसटी वोटबैंक क्या कांग्रेस की ओर मूव होगा या कोई और निर्णय लेगा। यह देखने वाली बात होगी।
डटे रहे रोहिन
जालोर में अब तक कुल 13 प्रत्याशियों का नामांकन वापस हुआ है। 2014 में बसपा से चुनाव लड़ चुके दलित समाज के बड़े नेता ओटाराम रोहिन तमाम दबावों के बावजूद मैदान में डटे रहे। भारत आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर इस बार नामांकन भरने के बाद रोहिन पर खासा दबाव था। यहां तक कि बांसवाड़ा में कांग्रेस की ओर से समर्थन दिए जाने के बावजूद रोहिन फोन बंद करके बैठ गए। कांग्रेस की पूरी टीम उन्हें तलाशने में जुटी रही, लेकिन ओटाराम ने नामांकन वापस नहीं लिया है। ऐसे में एससी एसटी वोट बैंक बसपा प्रत्याशी के समर्थन देने से ही कांग्रेस में चला जाएगा। यह भी एक बड़ा सवाल है। ओटाराम जेल महकमे में आईजी रहे हैं और राजस्थान के कद्दावर दलित नेता परसराम मोरदिया के समधी हैं।