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वैलेंटाइन तो सूली चढ़े शरीरी प्रेम की वकालत में। लेकिन मीरा? मीरा को उम्र भर अदेखे प्यार की सजा मिली और आज भी, इक्कीसवीं सदी में भी वह उस कलंक से आज़ाद नहीं हुईं।
तीसरी शताब्दी का रोमन साम्राज्य। वहां हुआ करता था कोई सेंट वैलेंटाइन। सम्राट और साम्राज्य के लिए बड़ा ही खतरनाक आदमी। लोगों को प्यार के इजहार का फंडा समझाने वाला।
समझाने वाला कि राह मुश्किल है लेकिन आज़ादी चाहिए तो प्रेम पंथ पर चलना होगा। प्रेम के ही पास है आज़ाद होने की कुंजी। वही बताएगा भी कि उसे अपने हिस्से की कितनी ज़मीन और कितना आसमान चाहिए।
ज़मीन और आसमान और हवा और उड़ान- सबको अपनी रिआया मानता था सम्राट। उसे यह कैसे मंजूर होता कि उसकी रिआया अपनी आज़ादी का एलान कर दे और प्रेम करने लगे?
प्रेम भी राजा का विशेषाधिकार हुआ करता था उन दिनों। ज़ाहिर है, सम्राट और साम्राज्य के लिए वाकई बहुत खतरनाक था वह संत। इतना खतरनाक कि राजा ने उसे फांसी पर चढ़वा कर ही दम लिया।
उसके पहले दुसह यातनाएं दीं, सो अलग। जब आप इजहार करते हैं तो आप बौद्धिक और तर्क सम्मत समर्थन जुटाते हैं। तो आप लामबंद होते हैं। तो आप षडयंत्र करते हैं। तो आप तख्ता पलटते हैं। तो आप सरकार गिराते हैं। वैलेंटाइन यही काम कर रहे थे जड़ हो चुके रोमन साम्राज्य में और उन्हें उसकी सज़ा मिली।
यही काम मीराबाई कर रही थीं भारत में। वह प्रेम भी कर रही थीं और इजहार भी। दोनों खुल्लमखुल्ला। वह भी सोलहवीं सदी में। वैलेंटाइन के सैकड़ों साल बाद। लेकिन एक फर्क है और गंभीर फर्क है। दोनों की मोहब्बत के पात्र अलग- अलग हैं।
वैलेंटाइन की दुनिया में औरत- मर्द या लड़का- लड़की हुआ करते थे, उनकी केमेस्ट्री हुआ करती थी, उनके अफसाने हुआ करते थे। एक ज़िद हुआ करती थी। सदियों से दफनाई गयी ज़िद जिसे उन्होंने वाणी दी। मीरा की दुनिया में कोई लड़का या लड़की नहीं है।
वहां सब कुछ उनका ईष्ट है और वह ईश्वर है। मीरा ने किसी आदमी से नहीं, ईश्वर से प्यार किया था जिसे आप देख नहीं सकते क्योंकि ईश्वर शरीरी नहीं है। तथाकथित सर्वशक्तिमान सत्ता शरीरी हो भी नहीं हो सकती। होगी तो उसका इकबाल और रसूख, दोनों खतरे में पड़ जाएंगे।
बहरहाल, मीरा ने अपने ईश्वर, अपने आराध्य, अपने कृष्ण को टूट कर चाहा और छिपाया कुछ भी नहीं। एक अशरीरी से प्यार करना किसी भी हाल में गुनाह नहीं है क्योंकि वह दृश्य और श्रव्य तो है ही नहीं।
लेकिन मीरा के समाज में और मीरा के दौर में ऐसा करना भी गुनाह था। वैलेंटाइन तो सूली चढ़े शरीरी प्रेम की वकालत में। लेकिन मीरा? मीरा को उम्र भर अदेखे प्यार की सजा मिली और आज भी, इक्कीसवीं सदी में भी वह उस कलंक से आज़ाद नहीं हुईं।
राजस्थान के पाली जिले में एक गांव है- कुड़की। यह गांव मीरा बाई का मायका है। इस गांव में उनका जन्म हुआ था। बरसों वह यहां रहीं। राणा खानदान में व्याहे जाने के बाद जैसे हर लड़की का मायका छूटता है, वैसे ही मीरा बाई से कुड़की भी छूटा होगा।
ससुराल में कृष्णभक्ति के चलते उन्हें क्या कुछ झेलना पड़ा, यह हम सबको पता है। पता कुड़की को भी होगा जहां कि वह लड़की थीं और जहां के लोग, इस इक्कीसवीं सदी में भी अपनी लड़कियों के नाम मीरा नहीं रखते। वे परहेज करते हैं। डरते हैं शायद कि लड़की कुलटा हो जाएगी। उसी मीरा की तरह।
मीरा उम्र भर मरती रहीं। रोज़ थोड़ा थोडा़। वैलेंटाइन के लिए एक खास दिन बदा था। तय आप करें कि कुर्बान असलतन कौन हुआ?