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Bhil Pradesh demand : बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम में आयोजित महारैली में चार राज्यों के आदिवासियों ने हिस्सा लिया।
बांसवाड़ा | भील प्रदेश बनाने की मांग को लेकर मानगढ़ धाम में आयोजित महारैली में देश के चार राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग पहुंचे। इस महारैली में आदिवासियों ने अपने हिंदू नहीं होने की बात दोहराई। भल प्रदेश का राजनीतिक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें कई सांसद और विधायक भी शामिल हुए।
भील प्रदेश की मांग जोर पकड़ रही है
आदिवासी समाज ने राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कुल 49 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग की है। राजस्थान के 33 जिलों में से 12 जिलों को इस प्रस्ताव में शामिल किया गया है। भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि भील प्रदेश की मांग नई नहीं है। बीएपी लंबे समय से यह मांग उठा रही है। महारैली के बाद एक डेलीगेशन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से प्रस्ताव के साथ मुलाकात करेगा।
आदिवासी महिलाएं पंडितों के बताए अनुसार न चलें: मेनका डामोर
आदिवासी परिवार संस्था की संस्थापक सदस्य मेनका डामोर ने मंच से कहा कि आदिवासी महिलाएं पंडितों के बताए अनुसार न चलें। आदिवासी परिवार में सिंदूर नहीं लगाते, मंगलसूत्र नहीं पहनते। आदिवासी समाज की महिलाएं और बालिकाएं शिक्षा पर फोकस करें। अब से सब व्रत-उपवास बंद कर दें। हम हिंदू नहीं हैं। आदिवासी परिवार संस्था चारों राज्यों में फैली हुई है।
कोई हमें नहीं रोक सकता: भंवरलाल परमार
महारैली के बाद आदिवासी परिवार के संस्थापक भंवरलाल परमार ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि सौ-सवा सौ साल पहले हमारे पुरखों ने आंदोलन शुरू किया था, तब 1500 लोगों को मार दिया गया। उनका क्या कसूर था? अब हमने फिर आंदोलन शुरू किया है। कोई हमें नहीं रोक सकता। भील प्रदेश की मांग तो समय पर पूरी होगी ही। इसकी एक प्रक्रिया होती है।
राजस्थान विधानसभा में भी उठी भील प्रदेश की मांग
राजस्थान विधानसभा में धरियावद से बीएपी विधायक थावरचंद मीणा ने कहा कि जब गुजराती के नाम पर गुजरात, मराठी के नाम पर महाराष्ट्र और पंजाबी के नाम पर पंजाब राज्य बन सकता है तो भीली बोली के आधार पर भील प्रदेश क्यों नहीं बन सकता है? मैं मांग करता हूं कि इसका प्रस्ताव पास करके सरकार को भेजा जाए।
सरकार ने किया प्रस्ताव खारिज
राजस्थान में राजनीतिक ताकत मिलते ही बीएपी ने अन्य जिलों और राज्यों के आदिवासियों को साथ लेकर अलग राज्य और संगठन मजबूत बनाने की मुहिम तेज कर दी है। बीएपी के पास राजस्थान के आदिवासी जिले बांसवाड़ा से 2 विधायक और एक सांसद हैं, लेकिन भील प्रदेश की मांग को लेकर सरकार ने अपना मत स्पष्ट कर दिया है। जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने कहा कि जाति के आधार पर स्टेट नहीं बन सकता। ऐसा हुआ तो अन्य लोग भी मांग करेंगे। हम केंद्र को प्रस्ताव नहीं भेजेंगे। खराड़ी ने यह भी कहा कि जिसने धर्म बदला, उन्हें आदिवासी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
भील प्रदेश का नारा संसद में भी गूंजा
बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने पिछले दिनों लोकसभा में शपथ लेने के दौरान भील प्रदेश के समर्थन में नारे लगाए थे। वे ऊंट पर बैठकर संसद पहुंचे थे।
मानगढ़ धाम का ऐतिहासिक महत्व
बांसवाड़ा जिले के जिस मानगढ़ धाम पर यह रैली हो रही है, वह आदिवासियों के लिए तीर्थ स्थल की तरह है। 19 नवंबर 1913 को ब्रिटिश सरकार ने यहां 1500 आदिवासियों का नरसंहार किया था। उन्हीं की याद में मानगढ़ धाम बना हुआ है। नवंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां सभा की थी, जिसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी शामिल हुए थे।
राजनीतिक दलों की आदिवासियों को साधने की कोशिश
राजनीतिक रूप से मानगढ़ धाम का महत्व बहुत ज्यादा है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां सभा की थी, ताकि इससे लगे गुजरात के आदिवासी क्षेत्र को साधा जा सके। वहीं राजस्थान के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यहां बड़ी रैली की थी।
आदिवासी परिवार संगठन का गठन
भारत आदिवासी पार्टी(बीएपी) आदिवासी परिवार नाम के संगठन से ही निकली है। आदिवासी परिवार को भारत आदिवासी पार्टी के नेताओं के साथ सामाजिक विंग के लोग मिलकर चलाते हैं। इसके साथ ही भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा भी भारत आदिवासी पार्टी का ही संगठन है।
सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट
बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम पर हो रही सभा के लिए प्रदेश के अलावा मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से भी आदिवासी समाज के लोग जुटे। सभा को लेकर प्रदेश की सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट मोड पर रहीं। सुरक्षा के मद्देनजर महारैली वाले इलाके में इंटरनेट बंद किया गया था।
इस प्रकार, मानगढ़ धाम पर आयोजित महारैली में चार राज्यों के आदिवासियों ने भील प्रदेश बनाने की मांग को लेकर अपनी आवाज बुलंद की। आदिवासी समाज की यह मांग लगातार जोर पकड़ती जा रही है और उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे।