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ज़ाहिर है, इस लिहाज से सबसे अच्छी रचनाएं अभी लिखी नहीं गयीं। वे अब भी गर्भस्थ हैं। वे लड़ रही हैं बाहर आने की जंग। लेकिन उन्हें सरोगेसी (कोख की किरायेदारी) नहीं चाहिए।
जब आप फैसले लेते हैं और जब आप ठान लेते हैं तो एक वक्त ऐसा भी आता है जब प्रतिकूलताओं से मुकाबले को कुदरत भी आपके पक्ष में षड्यंत्र करती है।
यह हम नहीं कह रहे। यह कहना है पालो कोएलो का। किताब है- द अलकेमिस्ट। यह किताब सपने तो जगाती ही है, उन्हें सरंजाम देने के रास्ते भी दिखाती है। अपने ढंग से। अपने क्रिएटिव अंदाज में।
हाल के दिनों में इस लेखक की तमाम चर्चित, अचर्चित किताबों से मिलना हुआ और मिलना भी ऐसे- वैसे नहीं.. दरांती चली, दरांती। घंटों- घंटों। भारी खूनखच्चर हुआ। हारा कोई नहीं लेकिन जीता भी कोई नहीं। और यह कोई फ्रेंडली मैच भी नहीं था।
बहरहाल, इस 'युद्ध' ने एक सबक जरूर दिया कि जो सपने नहीं जगाती और हौसले नहीं पैदा करती और जो सिर्फ 'फीलगुड' कराती है, वह और कुछ हो या न हो, रचना तो नहीं ही हो सकती।
रचना माने क्या? हमने खुद से कई बार पूछा है यह सवाल। हर बार एक ही जवाब मिला- वह जो समय भी हो और समय पार भी।
ज़ाहिर है, इस लिहाज से सबसे अच्छी रचनाएं अभी लिखी नहीं गयीं। वे अब भी गर्भस्थ हैं। वे लड़ रही हैं बाहर आने की जंग। लेकिन उन्हें सरोगेसी (कोख की किरायेदारी) नहीं चाहिए।