किस्सा कुर्सी का : क्या सीएम पद के तमाम दावेदार वसुंधरा राजे की तरह भीड़ खींचने में सक्षम होंगे ?

क्या सीएम पद के  तमाम दावेदार वसुंधरा राजे की तरह भीड़ खींचने में सक्षम होंगे ?
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राजस्थान की राजनीति में अनिश्चितता का दौर है। पीसीसी चीफ और उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट की भावी रणनीति को लेकर संशय बना हुआ है। सीएम अशोक गहलोत बजट घोषणाओं के बूते महंगाई राहत कैम्प लगा ,चुनावी राहत के जुगाड़ में लगे हैं। 

खुद पीएम  नरेंद्र मोदी कर्नाटक चुनाव से फ्री होते ही ,राजस्थान में किसी न किसी बहाने सभाएं कर जनजागरण में लगे हैं। लेकिन कांग्रेस हो चाहे बीजेपी ,दोनों ही दलों में नेतृत्व को लेकर असमंजस इस कदर है कि चुनावी ऊँट किस करवट और किसकी बदौलत बैठेगा कह पाना आसान नहीं है। 

जनाधार के लिहाज से या भीड़ खींचने के लिहाज से देखें तो पूरे राजस्थान में दो ही नेताओं की चर्चा सबसे ज्यादा होती है। ये नेता हैं -बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री  वसुंधरा राजे और कांग्रेस के पूर्व उप-मुख्यमंत्री  सचिन पायलट। ये दोनों नेता जहाँ भी निकलते हैं ,खुद-ब-खुद भीड़ जुट जाती है। बाकी नेता भी अपना जनाधार रखते हैं ,लेकिन उतना नहीं जितना कि श्रीमती राजे या पायलट। 

ऐसे में श्री गहलोत बजट घोषणाओं के बहाने सरकारी संसाधन के सहारे भीड़ जुटा अपनी पारी बरकरार रखने की कवायद कर रहे हैं ,यह भी किसी से छिपी हुई बात नहीं। 

प्रधानमंत्री श्री मोदी सीएम गहलोत की प्रो - पूअर या प्रो - पीपल इमेज बनाने की कोशिशों के बीच राजस्थान में लगातार सभाएं कर माहौल बनाने की कवायद में जुटे हैं ,लेकिन सवाल यह है कि बगैर स्थापित नेताओं को आगे किये वह कांग्रेस की मौजूदा सरकार को सत्ताच्युत करने में कामयाब हो भी जाएँ तो क्या 2024 में सभी 25 लोकसभा सीटों को जीत पायेंगे ? 

फिलहाल तो समीकरण इतने पक्ष में भी नहीं। एक और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने मूल वोट बैंक -दलित-दमित और मुस्लिम के पूरी तरह साथ लौट आने की सम्भावनाओं से गदगद हैं ,वहीँ कांग्रेस को यह भी लगता है कि सत्ताविरोधी हवा भी इस बार राजस्थान में कम से कम छह सीटें कांग्रेस के खाते में डाल ही देगा। सचिन पायलट ने अगर कांग्रेस से बाहर संभावनाएं तलाशी तो समीकरण बदलेंगे ,सो अलग। 

कहने को श्री पायलट को एक क्षेत्र और एक जाति तक सीमित करने की सरकारी चाहत को जामा पहनाने वाले मीडिया बंधु भी सक्रिय हैं। लेकिन सच इससे इतना इतर है कि समीकरण प्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में बदल जाए तो अचरज की बात नहीं। 

खासकर -भरतपुर ,जयपुर,अजमेर और कोटा संभाग में पायलट फेक्टर कुछ इस तरह असर दिखायेगा कि कांग्रेस ही नहीं ,बीजेपी को भी इन इलाकों में समीकरण साधने में पसीना आ जायेगा। 

खुद प्रधानमंत्री  मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने को आतुर बीजेपी के पास पूर्व सीएम श्रीमती राजे सबसे बड़ा चेहरा है। लेकिन बीजेपी हर इलाके और हर जात - - बिरादरी में दावेदार खड़े कर उसी तरह का चुनावी समीकरण बनाने को आतुर है ,जिस तरह 1998 में कांग्रेस ने स्वर्गीय परसराम मदेरणा ,नवलकिशोर शर्मा ,नाथूराम मिर्धा ,अशोक गहलोत और शिवचरण माथुर जैसे चेहरों को आगे करके किया था। 

बीजेपी कोटा संभाग से ओम बिड़ला ,मेवाड़ से सीपी जोशी  ,शेखावाटी से राजेंद्र राठौड़ और सतीश पूनिया  ,ढूंढाड़ से दिया कुमारी और राज्यवर्धन  सिंह मारवाड़ से गजेंद्र सिंह शेखावत और अश्विन वैष्णव के नाम को दावेदारों के रूप में उभार चुनावी फिजा बनाने के फेर में हैं। 

इनमें ओम बिड़ला,सतीश पूनिया और सीपी जोशी युवा मोर्चा या प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के तौर पर प्रदेश भर में अपना नेटवर्क बनाने में कामयाब रहे हैं तो गजेंद्र सिंह शेखावत संघ के दायित्वों और अपनी शिक्षा, खेल में रूचि के जरिये प्रदेशभर में अपना सम्पर्क बनाने में कामयाब रहे हैं। 

नेता प्रतिपक्ष से पहले ही राजेंद्र राठौड़ के जन्मदिन पर पूरे प्रदेश में रक्तदान करने वालों की बड़ी तादाद रही है ,जो इस बार करीब 68  हजार लोगों द्वारा रक्तदान के जरिये एक विश्व रिकॉर्ड का तमगा भी हासिल कर चुकी है। यानि ,सम्पर्क के लिहाज से ये दावेदार अपना असर रखते हैं। 

सवाल जब पब्लिक अट्रेक्शन का आता है ,जनाधार का आता है तो ये सभी दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कोसों दूर नजर आते हैं। बीजेपी ने इस बीच पन्ना प्रमुख से नीचे तक की लाइन तय कर पार्टी के संगठन महामंत्री  चंद्रशेखर के रणनीतिक कौशल से अपना बड़ा नेटवर्क स्थापित कर लिया है। लेकिन बीजेपी के ही भीतर मौजूद कई नेताओं का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी के लोकप्रिय और सर्व स्वीकार्य होने के बावजूद राजस्थान में श्रीमती वसुंधरा राजे के अलावा ऐसा कोई भी नेता नहीं ,जो हर सीट पर संभावित बगावत को रोक सके।

पार्टी सूत्रों के अनुसार कई चेहरों को आगे कर दिए जाने के बाद लगभग हर सीट पर कोई दर्जन भर दावेदार ,प्रभाव और प्रदर्शन की चाह में खर्च और सम्पर्क के लिहाज से इतना आगे बढ़ गए हैं कि किसी एक का नाम बतौर उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद उन दावेदारों को पार्टी के पक्ष में मनाने की क्षमता पूर्व सीएम राजे के सिवाय किसी की नहीं। 

और ,न ही ये तमाम दावेदार राजे की तरह भीड़ खींचने में सक्षम होंगे। ऐसे में सवाल यह भी है कि लोक लुभावन बजट को जनता के बीच अमलीजामा पहना रहे सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट की संभावित चुनौती से निपटने की कुव्वत क्या वसुंधरा के सिवाय भी किसी नेता में हैं ? 

सूत्र इन्ही खासियतों के आधार पर तमाम दावेदारों से ज्यादा अहमियत पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को दे रहे हैं। हालांकि ,समीकरण बता रहे हैं कि दिल्ली दरबार में जितना दखल इन दिनों लोकसभाअध्यक्ष ओम  बिड़ला का है ,उतना शायद किसी का भी नहीं। हालाँकि डार्क हॉर्स के बतौर इन सबमे एक नाम और भी चर्चा में रहा है और वह है -संगठन में कई दायित्व निभा चुके राज्यसभा सदस्य ओम प्रकाश  माथुर।  

लेकिन माथुर के साथ समस्या यही है कि  वह संगठन में पकड़ तो रखते हैं ,लेकिन ठकुरसुहाती बात कह किसी को खुश रख पाना उनके बूते में नहीं।

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