गहलोत सरकार को फटकार: संजीवनी मामले में हाईकोर्ट ने कहा कोर्ट को मजाक मत बनाइए

संजीवनी मामले में हाईकोर्ट ने कहा कोर्ट को मजाक मत बनाइए
ashok gehlot vs gajendra singh shekhawat
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राजस्थान हाईकोर्ट ने संजीवनी सोसायटी मामले में गहलोत सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि सरकार ने कोर्ट का मजाक बनाया है

आगे उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की और कहा कि सामान्य प्रक्रिया में अदालत के सामने आने पर अदालत उस पर सुनवाई करेगी

जयपुर | अशोक गहलोत सरकार के हाईकोर्ट में यूटर्न लेने पर न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की है। राजस्थान हाईकोर्ट ने संजीवनी सोसायटी मामले में गहलोत सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि उन्होंने कोर्ट का मजाक बनाया है।

न्यायमूर्ति कुलदीप माथुर ने मामले में राजस्थान सरकार की अर्जी पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि अदालत अपने हिसाब से चलती है। अदालत की यह प्रतिक्रिया सरकार द्वारा केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के मामले में शामिल होने के बारे में सरकार के विरोधाभासी बयान देने के बाद आई है।

आपको याद रहे कि 13 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने संजीवनी सोसाइटी मामले में शेखावत की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और राजस्थान सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रस्तुत किया था कि याचिकाकर्ता एसओजी द्वारा दर्ज किसी भी मामले में गजेन्द्रसिंह शेखावत आरोपी नहीं थे।

हालांकि, अगले ही दिन सरकार ने यह कहते हुए एक आवेदन दिया कि सिंघवी का बयान गलत था क्योंकि शेखावत वास्तव में एक आरोपी थे।

17 अप्रैल को एक सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति माथुर ने सरकार के विरोधाभासी बयानों पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि अदालत समयबद्ध तरीके से आवेदन पर कार्रवाई करेगी।

उन्होंने आगे उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की और कहा कि सामान्य प्रक्रिया में अदालत के सामने आने पर अदालत उस पर सुनवाई करेगी।

संजीवनी सोसायटी मामले में राजस्थान में एक सौर ऊर्जा परियोजना के लिए जमीन की खरीद में अनियमितता के आरोप शामिल हैं। इस मामले की जांच कर रहे राजस्थान सरकार के स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (एसओजी) ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर मामले में शामिल होने का आरोप लगाया है।

इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा फटकार उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करने और अदालत में सटीक जानकारी पेश करने के महत्व पर प्रकाश डालती है। इस टिप्पणी से गहलोत सरकार के तेवर एकबारगी ढीले पड़े हैं, लेकिन जनहित के मामलों में उसके वकील कैसे पैरवी करते हैं। इसकी पोल भी खुली है।

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